सत्ता के गलियारों में कोई नहीं चाहता था श्रीराम मंदिर समस्या का समाधान

जीवन की परिस्थितियाँ समय और काल के हिसाब से बदल जातीं है. मनुष्य इस धरती पर अपने हिस्से की जीवन यात्रा के लिए आता है, और अपनी आने वाली पीढ़ी को अपनी विरासत सौंप जाता है. प्रभु राम ने भी इस धरती पर मानव रूप में आकर राम राज्य की अपनी विरासत आने वाली पीढ़ियों को सौंप दी. रामभक्तों ने अपने आराध्य की जन्मभूमि पर उनका मंदिर बनाया और उन्हें पूजने लगे. समय बीतता गया, जब युग बदले तो भारतभूमि की पावन धरा पर आक्रमणकारियों ने उस मंदिर को तोड़ दिया और अपना धर्मस्थल बनाकर अधिकार जमा लिया. केवल इसी मंदिर को नहीं बल्कि देश भर के लाखों मंदिरों के साथ यही किया. पर समय सदैव एक सा नहीं रहता. फिर अंग्रेजो का साम्राज्य आया, और रामभक्तों को लगा कि, शायद वो इस समस्या का समाधान कर दें. पर ऐसा नहीं हुआ. और रामभक्त अपने आराध्य के मंदिर के लिए लगातार संघर्ष करते रहे. और लगभग 500 सालों के बाद इस समस्या का समाधान हुआ. और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से श्रीराम के भक्तों के पक्ष में फैसला आया.

लेकिन इस पूरे समयकाल की बात की जाए तो पिछले 100 साल इसके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. और खासकर आज़ादी के बाद के 74 साल. जब भारत में लोकतंत्र आया. और देश के लोगों को लगने लगा कि, अब सरकार श्रीराम के देश में रामभक्तों की भावनाओं को समझेगी, और उनका मंदिर बनाने के लिए प्रयास करेगी. पर सियासत के लिए तो ये एक मुद्दा था. लोगों को भड़काने का और वोट बैंक बनाने का, असल में कोई इस समस्या का समाधान नहीं चाहता था. और जब ये मामला कोर्ट में पहुँच गया तो इसकी तरफ से अपना ध्यान ही हटा लिया.

लेकिन वर्तमान सरकार ने इस मुद्दे को सुलझाने का वादा किया था. और रामभक्तों की आस्था को सम्मान दिया. जिसके चलते अब अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर बनकर तैयार होगा. और पूरी दुनिया के रामभक्तों का वो सपना साकार होगा, जो उन्होंने और उनकी पीढ़ियों ने सदियों से देखा था.