‘नुआखाई जुहार’ एक परम्परा, किसान पहली फसल करते हैं मां समलेश्वरी को समर्पित

ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड सहित अन्य राज्यों में हर साल गणेश चतुर्थी के अगले दिन ‘नुआखाई जुहार’ का त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दौरान बड़ी संख्या में किसान ओडिशा के संबलपुर में स्थापित आराध्य देवी मां समलेश्वरी के मंदिर पहुंचते हैं और उन्हें अपनी जमीन की पहली उपज समर्पित करते हैं। हालांकि इस वर्ष किसान ‘नुआखाई जुहार’ के मौके पर मां समलेश्वरी को अपनी पहली उपज नहीं चढ़ा पाए। क्योंकि कोरोना संकट के कारण श्रद्धालुओं को मां समलेश्वरी मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। ऐसे में श्रद्धालुओं ने सोशल मीडिया के जरिए ही मां समलेश्वरी के दर्शन किए। समलेश्वरी मंदिर ट्रस्ट बोर्ड ने भी श्रद्धालुओं को माता के ऑनलाइन दर्शन करवाने के लिए विशेष इंतजाम किए थे।

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मां समलेश्वरी का ऐतिहासिक मंदिर 16वीं सदी में बनवाया गया था। यह समलेश्वंरी देवी को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। समलेश्वोरी देवी को मां दुर्गा का रूप माना जाता है। मां समलेश्वरी मंदिर में माता की ग्रेनाइट के पत्थर की बनी हुई प्रतिमा स्थापित है। खास बात यह है कि यह प्रतिमा मानव निर्मित नहीं है। इसे जिस अवस्था में पाया गया था, उसी अवस्था में इसकी स्थापना कर दी गई। ओडिशा और छत्तीसगढ़ के लोगों की मां समलेश्वऑरी देवी के प्रति गहरी आस्था है। ‘नवरात्री’ और ‘नुआखाई जुहार’ के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। हालांकि इस वर्ष कोरोना के चलते श्रद्धालु माता के मंदिर पहुंचकर उनके दर्शन नहीं कर पाए।

बता दे कि ‘नुआखाई जुहार’ एक कृषि त्यौहार है जिसे नुआखाई परब या नुकाही भेटघाट भी कहा जाता है। नुआ का मतलब होता है नया और खाई का मतलब खाना यानी नुआखाई का अर्थ है नया खाना। इस दिन लोग अन्न की पूजा करते हैं और विशेष भोजन तैयार करते हैं। यह ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किसानों को ‘नुआखाई जुहार’ की शुभकामनाएं दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि, ‘नुआखाई का विशेष अवसर हमारे किसानों की मेहनत का जश्न मनाने का मौका है। यह शुभ दिन सभी के लिए समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य लाए।‘