ये कहानी है उस इंसान की जो जिंदगी की आपाधापी में किसी भी रेस में शामिल नहीं हुआ. जिसे महंगे कपडे, शानदार गाड़ियों और ऊंचे महलों ने कभी आकर्षित नहीं किया. लेकिन फिर भी वो उन सबसे आगे निकल गया, जो मंहगी गाड़ियों में बैठकर सिर्फ ऊंचाइयों के देखने के शौकीन हैं. जिसने बचपन में पिता की मौत के बाद मजबूरी में कक्षा 3 के बाद स्कूल छोड़कर मिठाई की दुकान में बर्तन धोना शुरू कर दिया. जिसके पास 2 – 3 जोड़ी कपड़ों के अलावा पैरों में पहनने के लिए टूटी चप्पलें ही हुआ करतीं थी, जिसके पास कोई जमा पूँजी नहीं. जिसने अपने नाम के आगे कभी श्री नहीं लगाया, उसी इंसान को सरकार ने पद्मश्री देकर सम्मानित किया. और अब तक इस महान इंसान पर 5 पीएचडी हो चुकी हैं. यहाँ हम बात कर रहे हैं कोसली भाषा के एक ऐसे कवि के बारे में, जिनके संघर्ष और सफलता की कहानी बेहद आश्चर्यजनक है.
ओड़िसा के रहने वाले हलधर नाग अब की उम्र लगभग 69 वर्ष है. और वो कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं. उनको अपनी सारी कविताएं और अब तक लिखे गए 20 महाकाव्य कंठस्थ हैं. संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के कलेक्शन ‘हलधर ग्रंथावली-2’ को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है.
उड़िया लोक कवि हलधर नाग की कहानी बहुत दिलचस्प है. 10 साल की उम्र में ही अनाथ हो गए थे वो. और उसके बाद और उसके बाद जीवन यापन के लिए कभी जूठे बर्तन साफ़ किये तो कभी स्कूल की रसोई में देख रेख का काम किया. कुछ सालों बाद बैंक से 1000 रुपये का क़र्ज़ लेकर स्कूल के सामने पेन पेंसिल आदि की छोटी सी दुकान खोल ली. उसी दौरान सन 1995 में उन्होंने ‘राम शबरी’ जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिख लिखकर लोगों को सुनाना शुरू किया. और धीरे धीरे वो इतने लोकप्रिय हो गए, जिसकी आहट दिल्ली के दरबार तक भी पहुँच गई. और साल 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
हलधर नाग के अनुसार हर कोई कवि है लेकिन कुछ के ही पास कला होती है कि इसे आकार दे पाएं. हलधर नाग पैरों में कभी कुछ नहीं पहनते. सादगी पसंद इस कवि का ड्रेस कोड धोती और बनियान है.