भारत के गौरवशाली किले: पांडवों के अस्तित्व की गवाही देता दिल्ली का पुराना किला

हमारे देश में किलों की कोई कमी नहीं हैं, यहां सभी प्रदेशों में अनेक किले हैं। कई किले तो इतने पुराने हैं कि उन्हें रामायण या महाभारत कालीन माना जाता है। इसी तरह का एक किला दिल्ली में है। इसे दिल्ली का पुराना किला कहा जाता है, जिसे महाभारत काल का माना जाता है और अब भी वहां पांडव काल के सबूत मिलते रहते हैं। इस तरह इस किले में हजारों साल पुराने राज छिपे हैं।

ImageSource

दिल्ली के पुराने किले में ऐसी कई बातें हैं, जो उसे अन्य किलों से अलग बनाती हैं। प्रगति मैदान के पास मौजूद इस किले से 3 हजार साल से भी ज्यादा समय पहले दिल्ली पर राज किया गया था। पांडव काल के बाद इस पुराने किले को 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इसमें ढाई हजार साल पहले से लोग रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ यहीं थी। उन्होंने सोने के स्तंभ और कीमती पत्थरों से महल बनवाए थे। चित्र वाले भूरे रंग के बर्तनों के अवशेष करीब-करीब हर खुदाई में पुराने किले में मिलते रहे हैं। ऐसे बर्तन महाभारत की कहानी से जुड़े कई और स्थानों से भी मिले हैं। ये करीब 1000 ईसा पूर्व के थे। इससे पुराने किले से पांडवों का संबंध पता चलता है। इसके अलावा बाद के अन्य कई शासकों के समय की निशानियां भी इस किले से मिली हैं।

दिल्ली के इस पुराने किले में पांडवों की राजधानी का पता लगाने के लिए कई बार खुदाई की गई। सबसे पहले सन् 1955 में पुराने किले के दक्षिण पूर्वी हिस्से में खुदाई की गई थी, तो यहां से चित्र वाले भूरे रंग के बर्तनों के टुकड़े मिले थे। इसके बाद 1969 में दोबारा खुदाई शुरू की गई, जो कि 1973 तक चलती रही। वैसे अभी तक चित्रित बर्तनों वाले लोगों की बस्ती का पता नहीं चला है। मौर्य काल की शुरुआत से मुगल काल तक के कुछ न कुछ अवशेष जरूर मिले। इसके बाद वर्ष 2014 में फिर से उसी हिस्से के आसपास खुदाई की गई। इसमें भी चित्रित भूरे रंग के बर्तनों के कुछ टुकड़े मिले। शुंग और कुषाण काल की मूर्तियां और सिक्के भी मिले हैें। यहां कोई स्ट्रक्चर सामने नहीं आया मगर, मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त, राजपूत शासन और कुछ और शासन के अवशेष यहां मिलते रहे हैं। इसमें मौर्य कालीन यानी करीब 2 हजार साल पुराना कुआं सामने आया। गुप्त काल के घरों की निशानी भी खुदाई में मिली है। 2017-18 में भी पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ का पता लगाने की फिर कोशिश हुई। करीब 7 महीने की खुदाई की गई। यहां 30 फुट नीचे तक जाने पर भी कुछ चित्रित भूरे रंग के बर्तनों के टुकड़े मिलते रहे। महाभारत कालीन इमारत होने की कोई निशानी नहीं अभी तक नहीं मिल पाई है।

ImageSource

इस किले में उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में तीन गेट हैं। अभी पश्चिमी गेट से किले में प्रवेश दिया जाता है। किले में एक तालाब भी था, जिसमें फव्वारा लगा था। पास ही लाल बलुआ पत्थर से बनी दोमंजिली इमारत है, जिसे शेर मंडल कहते हैं। शेर मंडल के पास एक बावली भी है, जिसमें आज भी पानी भरा है। किले में घुसते ही दाईं एक संग्रहालय बना हुआ है। इसमें खुदाई में निकले अवशेष लोगों के देखने के लिए रखे गए हैं। किले के साथ ही इस संग्रहालय को देखने के लिए यहां बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं।