कर्मसिद्धांत का नियम है कि मनुष्य को अपने कर्मों का शुभ या अशुभ फल जरूर मिलता है। इसलिए हमें फल चिंता किए बिना अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को उसकी सजा अवश्य मिलती है। भगवान बुद्ध ने भी बुरे कर्म और उसकी सजा को जातक कथा के माध्यम से समझाया है। कथा है कि किसी समय वन में एक विवेकशील भैंसा रहता था। अपनी प्रकृति के अनुसार भैंसा बलवान, काला और कीचड़ में सना हुआ, वन में विचरण करता था। उसी वन में एक नटखट बंदर रहता था। बंदर को शरारत करना बहुत पसंद था। खासकर दूसरों को परेशान करने में उसे बहुत मजा आता था।
नटखट बंदर हमेशा भैंसे को परेशान करता था। कभी वह सो रहे भैंसे के ऊपर उछल कूद करता था। कभी उसके सींग को पकड़कर हिलाता। कभी हाथों में लड़की लेकर यमराज की तरह उसकी सवारी करता। कभी भैंसा घास चरता तो बंदर उसे घास चरने से रोकता। उसी वन में एक वृक्ष पर यक्ष भी रहता था। यक्ष को बंदर की हरकतें बिल्कुल पसंद नहीं आती थीं। एक दिन उसने भैंसे से कहा कि बंदर रोजाना तुम्हे परेशान करता है। तुम इतने बलवान हो, इसके बाद भी उसे दंडित क्यों नहीं करते? इस पर भैंसे ने कहा कि किसी भी जीव को चोट पहुंचना अच्छी बात नहीं है। किसी को चोट पहुंचाने से स्वयं को सच्चा सुख कभी नहीं मिलता। वहीं मेरा मानना है कि बंदर को उसके कर्मों की सजा एक दिन जरूर मिलेगी।
एक दिन भैंसे की बात बिल्कुल सच साबित हुई। हुआ यह कि एक बार भैंसा विचरण करते हुए दूसरे स्थान पर चला गया जबकि भैंसे के स्थान पर दूसरा भैंसा आकर घास चरने लगा। अपनी शरारत में मदमस्त रहने वाला बंदर यह समझ ही नहीं पाया कि यह दूसरा भैंसा है। रोज की तरह वह जाकर घास चरते भैंसे की पीठ पर बैठ गया। दूसरे भैंसे को बंदर का यह कृत्य बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उसने तुरंत बंदर को अपने सींग से उठाकर जमीन पर पटक दिया और उसके शरीर में अपने सींग गाड़ दिए। इससे बंदर की उसी समय मृत्यु हो गई।