केवल तीन बाणों में महाभारत का युद्ध खत्म करने की क्षमता थी बर्बरीक में

हमारे देश में सबसे प्रसिद्ध महायुद्ध रहा है महाभारत, इस युद्ध के बीच ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश भी दिया था। इसके संदेश आज भी लोगों को संकट और भटकाव के बीच राह दिखाता है। कौरवों और पांडवों के बीच हुए इस युद्ध में कई बड़े-बड़े योद्धा शामिल हुए। महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने योद्धाओं से पूछा कि वे कितने दिनों में युद्ध खत्म कर सकते हैं। इसका जो जवाब आया उसके मुताबिक भीष्म पितामह 20 दिनों में, द्रोणाचार्य 25 दिनों में, कर्ण 24 दिनों में और अर्जुन 28 दिनों में समाप्त कर सकते थे, लेकिन एक महायोद्धा ऐसा भी था जो मात्र एक मिनट में तीन बाणों से इस युद्ध को खत्म करने की क्षमता रखता था। इस योद्धा का नाम था बर्बरीक।

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बर्बरीक घटोत्कच का पुत्र था और घटोत्कच भीम और हिडंबा का पुत्र था। यानी बर्बरीक भीम का पोता था। घटोत्कच का विवाह यादव राजा मुरु की बेटी मौरवी से हुआ था। मौरवी भगवान शिव की बड़ी भक्त थी। बर्बरीक भी मां की तरह शिव भक्त था। भगवान शिव ने भक्ति से प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान में अष्ट-देव की दिव्य शक्ति वाले तीन बाण दिए थे। बर्बरीक ने अपनी मां से ही युद्ध कौशल सीखा था। इस तरह बर्बरीक को दिव्य शक्तियां मिल गई थीं। इन्हीं दिव्य बाणों के माध्यम से बर्बरीक महाभारत युद्ध को कुछ ही पलों में (एक मिनट में) समाप्त कर सकता था। वैसे मौरवी ने अपने पुत्र बर्बरीक से यह भी वचन लिया था कि वह इन बाणों का इस्तेमाल युद्ध में कमजोर पक्ष की तरफ से करेगा। वास्तव में मौरवी को लग रहा था कि महाभारत युद्ध में सैन्य शक्ति कम होने से पांडव कमजोर पड़ सकते हैं।

माता मौरवी की आज्ञा पर बर्बरीक युद्ध में हिस्सा लेने के लिए रवाना हुआ। युद्ध तो पांडवों को ही जीतना था और कौरवों का कमजोर पड़ना भी तय था, ऐसे में बर्बरीक कहीं कौरवों के पक्ष में युद्ध लड़कर सारा खेल न बिगाड़ दे, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का वेश रखकर बर्बरीक के मार्ग में आकर उससे मिले। ब्राह्मण ने पूछा, तुम युद्ध में भाग लेने अकेले जा रहे हो, तुम्हारी सेना कहां है? तुम्हारे पास अस्त्र-शस्त्र भी अधिक नहीं दिख रहे। तुम्हारे पास सिर्फ एक धनुष है और तरकश में भी केवल तीन ही बाण दिखाई दे रहे हैं। ब्राह्मण ने कहा- कुरुक्षेत्र में ऐसा युद्ध होगा, जो फिर कभी नहीं होगा। वहां तुम कैसे अपना पराक्रम दिखाओगे? मेरी मानो लौट जाओ और जीवन का आनंद लो। बर्बरीक ने नम्रता से कहा- मेरी मां के आशीष का अपमान न कीजिए ब्राह्मण देवता। उनके प्रताप से मैं हारे का सहारा बनूंगा। ये तीन बाण साधारण नहीं हैं, दिव्य हैं। इस महाभारत युद्ध के लिए मेरा एक ही बाण काफी है, तीनों बाण चले तो सृष्टि का ही नाश हो जाएगा। यह बाण भगवान महादेव ने प्रसन्न होकर दिए हैं। इनकी विशेषता है कि एक बार में लक्ष्य साधते ही यह शत्रु समूह का समूल नाश कर देता है, चाहे वह कहीं भी जा छिपा हो।

ब्राह्मण ने कहा- तुम तो बातें करते हो, प्रमाण दिखाओ। उस पीपल के पेड़ के पत्तों को क्या एक ही बाण से वेध सकते हो? इस पर बर्बरीक ने कहा- मैं बातें नहीं करता, प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या जरूरत। लीजिए आप संतुष्टि कर लीजिए। कहकर बर्बरीक ने पीपल की ओर लक्ष्य कर दिया। बर्बरीक ने जैसे ही बाण संधान किया। ऐसा लगा कि लाखों बाण प्रकट होकर पीपल के पेड़ के पत्तों को बेधने लगे हों। यह देखकर ब्राह्मण ने एक पत्ते को चुपके से अपने पैर के नीचे छिपा लिया। सारे पत्तों को बेध लेने के बाद बाण ब्राह्मण के पैरों की ओर बढ़ा और पंजों को बेधने लगा।

बर्बरीक बोला- मेरे लक्ष्य से पैर हटा लीजिए ब्राह्मण देवता, नहीं तो यह आपके चरण बेध देगा। इतना सुनते ही ब्राह्मण ने पैर हटा लिया और बाण ने उस आखिरी पीपल के पत्ते को भी बेध दिया। यह देख ब्राह्मण वाह-वाह कर उठे और कहा कि तुम बहुत वीर हो, क्या इतने ही दानी भी हो। बर्बरीक ने कहा, जो योद्धा दानी नहीं, वह योद्धा भी नहीं। आप दान मांगकर देख लीजिए. मैं आपको वचन देता हूं। तब ब्राह्मण ने उनसे शीश दान मांग लिया। यह सुनकर बर्बरीक चौंका। उसने कहा- वचन देने के बाद पीछे तो नहीं हटूंगा, लेकिन आप अपना वास्तविक स्वरूप दिखाइए, क्योंकि कोई ब्राह्मण ऐसा दान नहीं मांग सकता।

बर्बरीक की प्रार्थना पर ब्राह्मण वेशधारी भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और उसके दान और युद्ध कौशल की प्रशंसा की। बर्बरीक ने कहा- अब तो मैं वचन दे चुका, लेकिन मैं महाभारत का युद्ध भी देखना चाहता था। यह इच्छा पूरी नहीं होने का दु:ख है, क्योंकि आपने मेरा शीश मांग लिया। मैं अपने पिता- पूर्वजों के किसी काम भी नहीं आ सका। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि तुम सृष्टि के अंत तक अमर रहोगे।