शकुनी के बदले ने पूरे कौरव वंश का कर दिया समूल अंत

गांधार देश के राजा सुबल की पुत्री गांधारी का विवाह जब महाराज धृतराष्ट्र के साथ हुआ तो उनका भाई शकुनी इससे खुश नहीं था. गांधारी शिवजी की बहुत भक्ति करती थीं. इसी वजह से भगवान शिव ने गांधारी को सौ पुत्र होने का वरदान दिया था.

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कहते हैं कि, शकुनि को अपनी प्रिय बहन गांधारी का महाराज धृतराष्ट के साथ हुआ विवाह बिलकुल भी रास नहीं आया था, लेकिन भीष्म पितामह की वजह से ये विवाह करना पड़ा. और शकुनी इस बात का बदला कौरव वंश से लेना चाहता था. गांधारी का पुत्र दुर्योधन अपने मामा की बात बहुत ज्यादा मानता था. और बचपन से दुर्योधन बस वैसा ही बन रहा था जैसा उसके मामा शकुनी उसे बनाना चाहते थे. दुर्योधन के मन में शकुनी ने ही पांडवों के लिए बचपन से ज़हर भरना शुरू कर दिया था. और उसके सभी भाइयों पर भी इसका असर हो रहा था.

गांधारी महाभारत नहीं होने देना चाहती थीं, और जब श्रीकृष्ण ने पांडवों की तरफ से पांच गाँव मांगे, तो दुर्योधन ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिया. लेकिन जब गांधारी को ये बात पता चली तो उन्होंने दुर्योधन से कहा, इस प्रस्ताव को स्वीकार कर ले. मगर स्वभाव से ही जिद्दी दुर्योधन ने अपनी माँ गांधारी के साथ भीष्म पितामह, श्रीकृष्ण, द्रोणाचार्य, और विदुर जैसे महान लोगों की बात भी नहीं मानी, क्योंकि बचपन से ही उसके स्वभाव पर उसके मामा शकुनी की गहरा असर था, और शकुनी चाहता था कि, पांडवों को उस राज्य में से एक सुई की नोंक जितनी जगह भी नहीं मिले, सबने कोशिश की कि उस समय की परिस्थिति को टाला जा सके, पर समय अपने गर्भ में पहले ही सब तय कर चुका था. आखिरकार धर्म और अधर्म के बीच महासंग्राम हुआ और उसके बाद इसका जो परिणाम हुआ वो पूरे संसार के सामने आज भी बहुत बड़ा उदाहरण है.