सनातन परम्पराओं के अग्रज हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, आदर्शों की मिसाल और हम सबके भगवान. श्रीराम साक्षात ईश्वर हैं, तो भगवान श्रीकृष्ण भी स्वयं नारायण हैं. धरती पर इन दोनों ने मानवरूप में जन्म लिया. और सम्पूर्ण मानवजाति का उद्धार कर दिया. श्रीराम तो सदैव अपने भक्तों के ह्रदय में रहते हैं, और श्रीकृष्ण हमारी जीवन शैली के हर हिस्से में बसते हैं. भक्त इस संसार में कहीं भी रहें, प्रभु उनके साथ ही होते हैं.
मनुष्य जीवन में कितना कुछ करता है. खुद को सम्हालता है, दूसरों को भी सम्हालता है. गलतियाँ करता है. फिर उन्हीं गलतियों पर पर्दा भी डालता है. कभी कभी कुछ ऐसा भी हो जाता है, जिससे उसके कृत्यों से केवल उसे ही नहीं, बल्कि कई लोगों को परेशानी होती है. और फिर ऐसे में कई बार अपना धैर्य भी खो देता है. लेकिन हर समस्या का समाधान है हमारे पास, हर मुश्किल से बाहर निकलने का रास्ता है.
यदि हमने रामायण, महाभारत और भगवतगीता को पढ़ा है. तो फिर हमें किसी स्थिति से डरने की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि ये तीनों हमारे जीवन के श्रेष्ठ गुरु और मार्गदर्शक हैं. जीवन में हमें क्या करना है, रामायण हमें यही सिखाती है. जीवन में क्या नहीं करना है, ये हमें महाभारत सिखाती है. और जीवन को कैसे जीना है ये सीख हमें श्रीमद्भगवद्गीता से मिलती है.
ये तीनों अगर हम सच्चे ह्रदय से पढ़कर इनमें लिखे आदर्शों पर अमल करें, तो पूरा जीवन सहज हो जाएगा. सदियों से ये तीनों समस्त मानवजाति का मार्गदर्शन कर रहे हैं. जब भी हम जीवन में किसी भी तरह के अंधेरों से घिरने लगें, तो इन तीनों का पाठ करना चाहिए. और अगर हमने इनका पाठ पहले किया है. तो हमेशा इनका स्मरण होना चाहिए. यदि इतना कर लिया तो किसी भी तरह की विपदा से आसानी से बाहर निकल जायेंगे.