भगवान श्रीराम की सहनशीलता

भगवान श्रीराम ने मानव रूप में वैसे तो राजा के घर में जन्म लिया था, लेकिन उनकी महानता ये थी कि, उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक सामान्य मानव की तरह जिया. उनके व्यवहार की कुछ बेहद ख़ास बातें थी. उन्हें क्रोध शायद ही कभी आया हो, क्योंकि सहनशीलता उनका प्रमुख गुण थी. लक्ष्मण जी उनके अनुज थी, लेकिन स्वभाव में एकदम विपरीत. उन्हें तुरंत क्रोध आ जाता था. चाहे वह सीता स्वयंवर के समय महर्षि परशुराम के साथ उनका संवाद हो, जब उनके अपने भाई भरत, रामजी को वापस बुलाने के लिए आते हैं, तब लक्ष्मण के मन में आयी ग़लतफ़हमी हो..लेकिन हर बार उन्हें समझाकर प्रभु श्रीराम ने शांत किया. ये भगवान राम का सबसे महान गुण था. श्रीराम ने अपने पूरे जीवन में जो भी कार्य किये, अगर इंसान उन पर चलने का थोड़ा सा भी प्रयास करे, तो सारी चीजें सहजता से समाप्त हो जायेंगी. मुश्किल घड़ी में प्रभु राम का नाम भी काफी होता है, वही नाम हमें हर मुसीबत से बाहर निकलने का रास्ता दिखा देता है.

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एक महान साम्राज्य के राजा के बेटे ने जितने कष्ट अपने जीवन में उठाये, उतना तो कोई सोच भी नहीं सकता, सुख और वैभव का त्याग करना आसान नहीं होता, जिनके पास नहीं होता, उनकी तो नीयति है, लेकिन होते हुए भी सब छोड़ देना, कितना मुश्किल होता है, ये समझने की आवश्यकता है.

उसके बाद वन वन भटकना, और हर हाल में दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहना, यही तो आदर्श हैं, जो महानता के उस पथ की तरफ लेकर जाते हैं, जिसमें सम्पूर्ण मानवजाति का कल्याण होता है.

श्रीराम के दिखाए हुए आदर्श जीवन जीने का एक तरीका हैं, अगर इंसान ये सोचकर जिए कि, उसे अपनी जीवन यात्रा में कुछ ऐसा करके जाना है, जो आगे आने वाली पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करे, बस इसी सोच से इंसान स्वार्थ, लालच, बुराई, क्रोध, अहंकार और अज्ञानता के अन्धकार से बाहर निकल जाता है.