कहते हैं रामायण अपने आप में एक सम्पूर्ण ग्रन्थ है. जिसमें धर्म, कर्म, समाज, जीवन, मर्यादा, संस्कार, अनुशासन जैसी कितनी बातें हमें सीखने को मिलती हैं. हर प्रसंग में कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर होता है, जिसमें जीवन की सीख है. रामायण में ऐसा ही एक प्रसंग है भगवान श्रीराम का उनके परम भक्त हनुमानजी और वानरराज सुग्रीव से मिलन. वो श्रीराम ही थे जो सुग्रीव को अपने बड़े भाई के प्रकोप से न केवल बचा सकते थे, बल्कि बाली का अंत करके सुग्रीव को को उनका राय वापस दिलवा सकते थे. कहते हैं, बाली और सुग्रीव दोनों ही भाई बहुत बलशाली थे. पर बाली के अन्दर अपार बल था. जब भी कोई उसके सामने आता था. तो उसकी आधी शक्ति बाली को स्वत ही मिल जाती थी, जिसके कारण वो महाशक्तिशाली बन जाता था. लेकिन कम ही लोग होंगे जिन्हें यह पता होगा, कि बाली और सुग्रीव के पिता कौन थे?
शक्तिशाली वानर राज बाली के पिता देवराज इन्द्र थे तो सुग्रीव के पिता सूर्य देव लेकिन इन दोनों की माता एक ही थीं, जो पहले एक नर वानर थीं.
आपको जानकर आश्चर्य होगा, कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाली और सुग्रीव की माता एक नर वानर थे, जिनका नाम ऋक्षराज था. वो एक तालाब में स्नान करने के कारण स्त्री बन गईं. इस तालाब को शाप था कि जो भी नर इसमें स्नान करेगा वह सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लेगा. मान्यता है, कि ऋक्षराज बहुत ही उद्दंड वानर थे और ऋष्यमूक पर्वत पर रहा करते थे.
तालाब में स्नान करने के बाद जब वे सुंदर स्त्री में बदल गए तो बहुत अहसज हो गए. वो समझ ही नहीं पा रहे थे कि उन्हें क्या हो गया है. माना जाता है, कि इसी बीच देवराज इंद्र की उन पर दृष्टि पड़ गई, देवराज उनकी सुंदरता पर मोहित हो गए. देवराज इंद्र और ऋक्षराज से जो पुत्र उत्पन्न हुए वे बाली कहलाए.
देवराज की ही तरह सूर्य देव भी ऋक्षराज की सुंदरता से मोहित हुए बिना नहीं रह पाए. सूर्य देव और ऋक्षराज के मिलन से जो पुत्र हुए वो सुग्रीव कहलाए. अपने दोनों पुत्रों का पालन पोषण ऋक्षराज ने ऋष्यमूक पर्वत पर ही किया था. धार्मिक मान्यता यह भी है, कि बालों पर तेज पड़ने के कारण देवराज इंद्र से उत्पन्न पुत्र का नाम बाली पड़ा वहीं ग्रीवा पर तेज पड़ने के कारण सूर्य देव से उत्पन्न पुत्र का नाम सुग्रीव पड़ा.