भारत के गौरवशाली किले : देश की शान लाल किला जहां से प्रधानमंत्री करते हैं देश को संबोधित

भारत में कई किले और महल भारतीय संस्कृति, इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम के गवाह हैं, लेकिन देश में शायद ही ऐसा कोई होगा, जिसने देश की राजधानी दिल्ली के लाल किले का नाम नहीं सुना होगा। राष्ट्रीय महत्व का यह किला वह स्थान है जहां से प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त को देश की जनता को संबोधित करते हैं। यह दिल्ली का सबसे बड़ा स्मारक भी है। इसकी दीवारों के लाल रंग के कारण इसे लाल किला कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष 2007 में युनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया था। इसके पहले सन् 1913 में इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया था।

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आजादी के पहले लगभग 3000 लोग इस किले के अंदर बने महलों और इमारतों में रहा करते थे। बाद में सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद किले पर ब्रिटिश सेना का कब्जा हो गया था और यहां से नागरिकों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। लाल किला बहुत पुराना है। यह बलुआ पत्थर से बना हुआ है। इसे पहले के शासकों ने अपनी राजधानी के रूप में भी इस्तेमाल किया था। यह किला ताजमहल और आगरा के किले की तरह ही यमुना नदी के किनारे स्थित है। इसे कभी लालकोट कहा जाता था, जिसे राजा पृथ्वीराज चौहान ने बारहवीं सदी में राजधानी बनाया था। लालकिले का नए सिरे से निर्माण सन् 1638 में किया गया था, जिसका काम सन् 1648 में पूरा हुआ था। इसकी चार दीवारी ढाई किलोमीटर लंबी है और नदी के किनारे से इसकी ऊंचाई 60 फीट, तथा शहर की ओर से 110 फीट है। इसका नाप लेते वक्त पता चलता है कि इसके निर्माण की प्लानिंग 82 मीटर की वर्गाकार ग्रिड का प्रयोग कर बनाई गई थी। इसके बाद के बदलावों में इसकी योजना के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होने दिया गया।

11 मार्च 1783 को सिखों ने लालकिले में प्रवेश कर दीवान-ए-आम को कब्जे से मुक्त कराया। यह कार्य करोर सिंहिया मिस्ल के सरदार बघेल सिंह धालीवाल के नेतृत्व में हुआ। 18वीं सदी में हुए आक्रमणों के कारण इसके लगभग अस्सी प्रतिशत मंडपों तथा बगीचों को नष्ट कर दिया गया। इन तबाह बागों एवं बचे हुए हिस्से को फिर से बनाने की योजना सन् 1903 में बनी और लाल किले को फिर से सजाया गया। लाल किला वास्तव में एक महत्वपूर्ण इमारत समूह है, जो भारतीय इतिहास एवं उसकी कलाओं को अपने में समेटे हुए है। यह वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण भी है। इस किले के मुख्य दो द्वार हैं- दिल्ली दरवाजा एवं लाहौर दरवाजा। लाहौर दरवाजा मुख्य प्रवेश द्वार है। इसके अंदर एक बाजार है चट्टा चौक। इस बाजार में किले की दीवारों के किनारे दुकानें लगी हुई हैं। इस किले में संगीतज्ञों के महल के साथ ही दीवान-ए-खास है, जो राजा का सुसज्जित निजी सभा-कक्ष था। इसमें पुष्प की आकृतियों से सजे हुए स्तंभ हैं। इन पर सोने की परत चढ़ी हुई है तथा बहुमूल्य रत्न जड़े हैं। इसकी मूल छत पर काष्ठ-कला (लकड़ी पर कारीगरी) देखते ही बनती है। इन पर चांदी की परत चढ़ाई गई है।

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ऐसे ही कई कारण हैं जिसके कारण लाल किला दिल्ली का सबसे पसंदीदा पर्यटन- स्थल बना हुआ है। लोग यह भी देखने आते हैं कि प्रधानमंत्री किले की किस जगह से तिरंगा फहराकर 15 अगस्त का महत्वपूर्ण भाषण देते हैं। इस तरह यह किला हर साल लाखों सैलानियों का ध्यान अपनी ओर खींचता है।