प्रभु राम ने सिखाया, दूसरों की सहायता करके आगे बढ़ते जाना

प्रभु राम ने मानवजाति को जीवन का धर्म सिखाया, प्राणियों को सत्कर्म सिखाया. देवों ने भी मानव रूप में उनके महान कार्यों को देखा. कितने लोगों का उद्धार किया. कितने दुखियों का बेड़ा पार किया, और सबकुछ अनुशासन और मर्यादा के साथ. पूरा जीवन संत की तरह जीते हुए मानव सेवा को ही अपना सबसे बड़ा धर्म बनाया. एक प्रतापी राजा होने के समस्त गुणों को अपनाकर संयम और धैर्य के साथ सबकी भावनाओं को सम्मान दिया.

भगवान राम के आदर्शों से हमें यही सीख मिलती है कि, किसी की सहायता करते समय यह नहीं सोचना चाहिए कि, वह भविष्य में हमारे काम आएगा या नहीं. बस सहायता करके भूल जाना चाहिए. क्योंकि बदले की अपेक्षा ही आगे जाकर हमारे दुखों का कारण बनती है. हम जो भी कर रहे हैं, वो सब परमात्मा देख रहे हैं, उनसे कुछ भी छिपा नहीं है. और जो दूसरे कर रहे हैं, वो भी पूरी तरह परमात्मा की नज़र में है. इसलिए ना कभी किसी को बताइए और ना जताइए, बस ज़रूरतमंदों की सहायता करते जाइए और आगे बढ़ते जाइए. और हाँ मन में ये विश्वास होना बेहद ज़रूरी है कि, जब किसी और जरूरतमंद की सहायता के लिए परमात्मा ने जिस तरह हमें भेजा है, ठीक उसी प्रकार जब हमें आवश्यकता होगी, तब परमात्मा हमारी सहायता के लिए किसी ना किसी को निश्चित भेज देंगे. यही वो भरोसा है, जो हम सबको जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. श्रीराम साक्षात ईश्वर हैं. जीवन की विपदाओं से जब हम घबराते हैं तो वो हमें सम्हालते हैं. और किसी न किसी माध्यम से किसी को हमारी सहायता के लिए भेज देते हैं. सत्कर्म जीवन में कभी व्यर्थ नहीं जाते, उनका फल हमें अवश्य मिलता है. हम जिस तरह की फसल बोते हैं, उसी तरह का फल हमें मिलता है.