गंगा पार करके माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ यहाँ किया था प्रभु श्रीराम ने विश्राम

वनवास के दौरान भगवान श्रीराम अपने भाई और पत्नी के साथ जहां-जहां पहुंचे वह स्थान तीर्थ बन गए। हजारों साल बाद भी लोग वहां दर्शन, पूजन-अर्चना कर खुद को धन्य मानते हैं। भगवान श्रीराम ने जनकल्याण के लिए वन का मार्ग चुना और अपनी लीला के माध्यम से संतों, ऋषि-मुनियों को दर्शन देकर कृतार्थ किया। इसके साथ ही दुष्टों का अंत कर शांति की स्थापना की। पिता दशरथ की आज्ञा के बाद जब भगवान राम वन के लिए रवाना हुए तो उन्होंने श्रंगवेरपुर यानी अब के सिंगरौर में पवित्र गंगा नदी पार की और वे दूसरे पार स्थित गांव कुरई पहुंचे। इलाहाबाद जिले के इस गांव को कुछ लोग खुरई के नाम से भी पहचानते हैं। मतलब गंगा के इस पार सिंगरौर तो उस पार कुरई।

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कुरई में एक छोटा-सा मंदिर है, जो उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के बाद श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था। इसके बाद श्रीराम कोखराज पहुंचे और फिर वहां से कौशांबी रवाना हुए, जिसे अब मंजनपुर कहा जाता है। इसके बाद प्रभु श्रीराम प्रयागराज की ओर आगे बढ़े। प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा गया है। यहां पहुंचने के कारण भगवान राम का इससे गहरा नाता रहा है। रामचरित मानस में इस शहर को प्रयागराज कहा गया है, जिसका नाम बाद में इलाहाबाद पड़ गया। वन जाते वक्त भगवान श्रीराम भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर होते हुए प्रयाग गए थे। श्रीराम को भारद्वाज ऋषि ने प्रयागराज की महिमा बताई थी। सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक पुराण मत्स्य पुराण के 102 अध्याय से लेकर 107 अध्याय तक इस तीर्थ की महिमा का वर्णन है, जिसमें लिखा गया है कि प्रयाग प्रजापति का क्षेत्र है, जहां गंगा और यमुना बहती हैं, इसलिए उसका नाम प्रयागराज पड़ा था। प्राचीन काल में संगम के जल से राजाओं का अभिषेक होता था। महर्षि वाल्मीकि ने इस बात का उल्लेख रामायण में किया है। कहा जाता है कि प्रयागराज पहुंचकर श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी भावविभोर हो गए थे।

शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रयागराज में ही प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के ‘प्र’ और ‘याग’ अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु हैं और वे यहां वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहां बारह स्वरूप विद्यमान हैं, जिन्हें ‘द्वादश माधव’ कहा जाता है। सबसे बड़े महाकुंभों की चार स्थलियों में से प्रयाग भी है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने राम वन पथ से जुड़े कई पुरातात्विक स्थलों का पता लगाया है। इसके लिए 70 स्थानों पर खुदाई भी कराई गई। रिपोर्ट के मुताबिक निषादराज ने तब भगवान राम से अपने महल में एक रात प्रवास करने का आग्रह किया था, लेकिन यहां से दो किमी दूर स्थित रामचौरा में जाकर एक वृक्ष के नीचे लक्ष्मण व सीता के साथ रात बिताई थी। तब निषादराज ने अपनी सेना के साथ वहां पहरा दिया था। इसके बाद भगवान राम ने कुरई घाट पर दूसरा पड़ाव डाला था। यहां से आगे मौजूदा कौशांबी में भी एक रात श्रीराम ने बिताई थी। भगवान राम के वन गमन पथ को लेकर लोगों की जिज्ञासाएं हमेशा से ही रही हैं और लोग यह जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं कि अब उन स्थानों को क्या कहा जाता है और वे कहां हैं। खुशी की बात है कि अनेक लोगों और संस्थाओं के प्रयास से भगवान राम के वन पथ के स्थानों को चिह्नित कर लिया गया है।