लंका के राजा रावण के भाई कुम्भकर्ण को पराक्रम की बजाय उसकी नींद की वजह से पहचाना जाता है। कुम्भकर्ण के सोने के बारे में कहा जाता है कि वह छह महीने बाद सिर्फ एक दिन जागता था। कुम्भकर्ण रावण का छोटा भाई तथा ऋषि विश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र था। कुम्भकर्ण के विशाल शरीर के बारे में जानकर आपको आश्चर्य होगा, उसकी ऊंचाई छह सौ धनुष (धनुष की लंबाई एक मीटर से डेढ़ मीटर होती थी) तथा मोटाई सौ धनुष थी। इतना ही नहीं ऋषि पुत्र होने के कारण कुम्भकर्ण को तमाम वेदों और धर्म-अधर्म की जानकारी थी। वह भूत और भविष्य का ज्ञाता भी था।
कुम्भकर्ण के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब उसका जन्म हुआ तो वह कई लोगों को खा गया था। इसके बाद सभी देवता बहुत भयभीत हो गए और उन्होंने इंद्र से इसके लिए मदद मांगी। इस पर जब इंद्र ने कुम्भकर्ण से युद्ध किया तो कुम्भकर्ण जीत गया। कुंभ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण उसका नाम कुम्भकर्ण रखा गया था। वह विभीषण और शूर्पणखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही उसमें बहुत बल था। एक बार में वह जितना भोजन करता था, उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे।
कुम्भकर्ण का विवाह वेरोचन की बेटी व्रजज्वाला से हुआ था। इसके अलावा करकटी भी उसकी पत्नी थी। इन दोनों से उसे तीन बच्चे थे। करकटी राक्षसी सह्याद्री की राजकुमारी थी, जिस पर मुग्ध होकर कुम्भकर्ण से उससे शादी कर ली थी, जिससे भीमासुर का जन्म हुआ था। कुम्भकर्ण का एक तीसरा विवाह भी हुआ था। ये विवाह कुंभपुर के महोदर नामक राजा की बेटी तडित्माला से हुआ था। व्रजज्वाला से दो बेटे थे। उनके नाम कुंभ और निकुंभ थे। निकुंभ काफी शक्तिशाली था। उसे कुबेर ने निगरानी का खास दायित्व सौंप रखा था।
वास्तव में कुम्भकर्ण को इस बात का पता था कि श्रीराम भगवान विष्णु का अवतार हैं। राम-रावण के युद्ध के समय जब कुम्भकर्ण को बलपूर्वक जगाया गया और उसे कारण बताया गया तो उसने बड़े भाई रावण को खूब खरी-खरी सुनाई और कहा कि उसने गलत काम किया है। इसके बाद भी उसने युद्ध में भाई का साथ दिया। वह वानर सेना के कई योद्धाओं पर भारी पड़ा था, अंतत: भगवान श्रीराम ने उसका अंत कर उसे मोक्ष प्रदान किया।