प्राचीन भारत का गौरव सोमपुरा विश्वविद्यालय- जहां नहीं लिया जाता था शिक्षा का शुल्क

शिक्षा हमारे देश की प्रमुख विशेषताओं में से एक रही है। यह विशेषता प्राचीन काल से अब तक बनी हुई है। सदियों पहले भी भारत में शिक्षा के कई केंद्र थे, जहां पर देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे। प्राचीन शिक्षा केंद्रों में एक प्रमुख नाम रहा है सोमपुरा विश्वविद्यालय का। यह उच्च स्तर की शिक्षा के लिए पहचाना जाता था।

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सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजाओं ने की थी। आठवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच 400 साल तक यह विश्वविद्यालय प्रसिद्ध रहा है। काफी भव्यता के साथ इस विश्वविद्यालय का परिसर लगभग 27 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ था। उस समय पूरे विश्व में ये सबसे अच्छा शिक्षा केंद्र था। प्राचीन समय में सोमपुरा विश्वविद्यालय छठे नंबर का था। प्राचीन बंगाल और मगध में पाल राजाओं के वक्त सन् 810 से 850 के बीच चले विजय अभियान के बाद इस विश्वविद्यालय को बनाया गया था। इसके धर्मपाल और देवापला उत्तराधिकारी थे।
एक अन्य शिलालेख पर सन् 850 से 854 के बीच अजयागर्भा के नाम के साथ-साथ महेंद्रपाला का नाम उत्तराधिकारी के रूप में लिखा है। अन्य प्रमाणों के मुताबिक सन् 995 से 1043 के बीच महिपाला के शासनकाल के दौरान विश्वविद्यालय भवन की मरम्मत की गई थी। हालांकि सोमपुरा विश्वविद्यालय के अवशेष वर्तमान के बांगलादेश में है। इसके संबंध में सम्राट अशोक के स्तूपों और शिलालेखों में भी जानकारियां मिलती हैं।

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इस विश्वविद्यालय में तर्क शास्त्र, कानून, इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान सहित कई विषय पढ़ाए जाते थे। इस विश्वविद्यालय में शिक्षा नैतिक मूल्यों के आधार पर दी जाती थी। अन्य विश्वविद्यालय की तरह यहां भी पढ़ाई का कोई शुल्क नहीं लिया जाता था। इसके परिसर में ही लगभग 8500 छात्रों के रहने की सुविधा थी। इस शिक्षा केंद्र के माध्यम से पाल राजाओं ने अन्य राजाओं के साथ मिलकर एक नेटवर्क तैयार किया था। इससे विश्वविद्यालय के संचालन में सहायता मिलती थी। शिक्षा के ये प्राचीन केंद्र आज भी प्राचीन भारत की गाथा सुनाते हैं और प्रेरणा देते हैं।