पुरुषोत्तम मास यानि उपवास का महीना, व्रत से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा हो जाता है कम

अधिक मास जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. इस मास में कई लोग व्रत करते हैं. कुछ लोग फलाहार करते हैं तो कुछ पूरे दिन सिर्फ पानी पीकर दिन व्यतीत करते हैं. आयुर्वेद के अनुसार इसे लंघन का नाम दिया गया है. वहीं विज्ञान का मानना है कि व्रत करने से पाचनक्रीया मजबूत होती है. साथ ही इस तरीके को कई बीमारियों के खिलाफ कारगर हथियार के तौर पर भी माना जाता है. वहीं विज्ञान व्रत करने वाली बात को बीमारियों के खिलाफ कारगर हथियार के तौर पर भी मान रहा है. जर्मनी के दो सबसे चर्चित संस्थान डीजेडएनई और हेल्महोल्ज सेंटर के साझा शोध में उपवास संबंधी कई जानकारियां सामने आई हैं।

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जानकारी अनुसार वैज्ञानिकों ने चूहों के दो ग्रुप बनाए, और एक ग्रुप को उपवास की श्रेणी में रखा, तो दूसरे ग्रुप को खाने की श्रेणी में. इसके बाद जो परिणाम आए हैं वह देखने लायक है. शरीर को फायदा तब मिलता है जब भोजन के बीच में लंबा अंतराल रखा जाता है, यानि एक दिन उपवास रखते हुए सिर्फ पानी पीना। उसके बाद पता चला कि पानी पीने वाले चूहों के ग्रुप का जीवन दूसरे ग्रुप की अपेक्षा लंबा रहा.

ढल जाता है शरीर

शुरुआती समय में उपवास में परेशानी तो होती है, लेकिन कुछ समय व्यतीत होने के बाद यह परेशानी आदत में तब्दील हो जाती है. जानकारी के अनुसार जो 12 घंटे तक कुछ नहीं खाते उनके शरीर में ऑटोफागी नाम की सफाई प्रक्रिया शुरू हो जाती है। बेकार कोशिकाओं को शरीर अपने आप साफ करने लग जाता है। भूख और उपवास नई कोशिकाओं को बनाने में बेहद फायदेमंद है। जापान के वैज्ञानिक योशिनोरी ओसुमी ने ऑटोफागी प्रक्रिया की खोज 2016 में की थी. इन्हें नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.

औषधि है उपवास
माना जाता है कि व्रत या उपवास करने से उम्र बढ़ती है. डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा भी टल जाता है. लेकिन उपवास की प्रक्रिया बुढ़ापे पर कुछ भी असर नहीं डालती. वैज्ञानिकों का मानना है कि बुढ़ापे की परेशानियां एक प्राकृतिक होती हैं. वैज्ञानिकों ने बुढ़ापे से जुड़ी 200 समस्याओं पर गौर किया। बुढ़ापे में शरीर की सक्रियता कम हो जाती है। आंख और कान भी कमजोर हो जाते हैं। चाल धीमी पड़ जाती है। इसलिए बुढ़ापे पर उपवास का कोई असर नहीं पड़ता।

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धीमे बढ़ी कैंसर कोशिकाएं
वैज्ञानिकों ने बताया कि कैंसर केवल इंसान ही नहीं चूहों में भी मौत का सबसे बड़ा कारण है. वैज्ञानिकों ने कैंसर से जूझ रहे चूहों पर भी शोध किया. एक को व्रत कराए, दूसरे को नहीं। जांच से जानकारी प्राप्त हुई है कि भूखे रहने वाले चूहों के शरीर में कैंसर कोशिकाएं धीमी गति से बढ़ीं। उपवास वाले चूहे की उम्र लंबी (908) हुई है. वहीं जिन चूहों ने खाया उनकी उम्र महज 806 दिन रही.