रामायण की सभी घटनाओं और प्रसंगों में सम्पूर्ण मनुष्यों के लिए बहुत बड़ी सीख और मार्गदर्शन है. अधर्मी रावण का अन्त करने के बाद प्रभु श्री राम, लक्ष्मणजी, सीता माता और हनुमानजी समेत पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे. इस विमान की विशेषता ये थी कि ये मनचाहे आकार में ढल सकता था. आसान शब्दों में कहें तो इस विमान को बढ़ाया और घटाया जा सकता था.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब हनुमानजी, माता सीता को खोजते खोजते पहले लंका में और फिर रावण के दरबार में पहुंचे थे तब पहली बार उन्होंने पुष्पक विमान को देखा था. इस विमान को कई दुर्लभ रत्नों से सजाया गया था. इस विमान में कई रंगों के फूल लगे हुए थे जो इस पुष्पक विमान की सुदंरता को बढ़ा रहे थे.
हालांकि लंकापति रावण के पास बहुत कुछ ऐसा था, जो बेशकीमती और अद्भुत था और उसके अलावा किसी के पास नहीं था, और तो और उसकी सम्पूर्ण लंका नगरी भी सोने की बनी हुई थी, पर इन सबमें पुष्पक विमान की जो विशेषता थी, उससे ये साबित होता था कि रावण ने ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए कितना जप तप किया होगा, क्योंकि उसी के पश्चात पुष्पक विमान की प्राप्ति हो सकती थी और वैसे भी ये विमान तो तीनों लोकों में रावण के अलावा किसी और के पास नहीं था, यहां तक कि किसी देवी-देवता को भी ये सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था.
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में पुष्पक विमान के लिए लिखा है कि-
मन: समाधाय तु शीघ्रमामिनं, दुरासदं मारुततुल्यमामिनम्।
महात्मनां पुण्यकृतां महद्र्धिनां, यशस्विनामग्र्यमुदामिवालयम्।।
रावण के पुष्पक विमान का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. इस विमान में कई विशेषताएं थी. जैसे कि यह विमान बहुत तेज चलता था और जब रावण कहीं जाने के लिए बस सोचता था, उसी समय पुष्पक विमान रावण को तुरंत वहां पहुंचा देता था. यह विमान बहुत ही दुर्लभ हुआ करता था और वायु के समान वेगपूर्वक आगे बढ़ने वाला था.