अयोध्या में बनने जा रहे श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन की घड़ी जैसे-जैसे करीब आ रही है, वैसे-वैसे श्रद्धालुओं का उत्साह बढ़ता जा रहा है। भगवान श्री राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन को लेकर अयोध्या ही नहीं बल्कि पूरे देश में हर्ष का माहौल है। इस शुभ अवसर को भगवान श्री राम के वंशज कहे जाने वाले रघुवंशी समाज के लाखों लोग दिवाली के रूप में मनाएंगे। यही नहीं भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बनने के बाद अखंड रघुवंशी समाज कल्याण महापरिषद द्वारा रामलला को 11 किलो चांदी का धनुष-बाण भी भेंट किया जाएगा।
अखंड रघुवंशी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरिशंकर सिंह रघुवंशी ने बताया कि देश के चार राज्यों के 41 जिलों में रहने वाले रघुवंशी समाज के पांच लाख से ज्यादा लोग अपने आराध्य प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के अवसर को दिवाली के रूप में मनाएंगे। पांच अगस्त को रघुवंशी समाज से जुड़े लोग दोपहर में भगवान श्री राम की पूजा और आरती करेंगे जबकि शाम को दीप प्रज्ज्वलित करेंगे और अपने घरों की छतों पर ध्वज फहराएंगे। हरिशंकर सिंह रघुवंशी ने सरकार से मांग की है कि अगर संभव हो सके तो रघुवंशी समाज को कारसेवा का मौका भी दिया जाए।
रघुवंशी का अर्थ है रघु के वंशज यानी राजा रघु के वंशज रघुवंशी कहलाते है। राजा रघु के नाम पर ही रघु वंश की नीव रखी गई थी। मान्यता है कि अयोध्या के राजा दिलीप अपनी पत्नी सुदक्षिणा के साथ संतान प्राप्ति की कामना के साथ ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में गए थे। ऋषि वशिष्ठ ने राजा दिलीप और उनकी पत्नी को गौ माता नंदिनी की सेवा करने के लिए कहा। राजा दिलीप और उनकी पत्नी पूरे श्रद्धाभाव से गौ माता नंदिनी की सेवा की। इससे गौ माता नंदिनी प्रसन्न हुई और अपना दूध पीने के लिए कहा। इसके बाद राजा दिलीप को पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम रघु रखा गया।
राजा रघु बचपन से ही अत्यंत पराक्रमी थे। बाल्यकाल में ही उनके पिता ने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छोड़ा था, जिसे इंद्र देव ने पकड़ लिया था। इसके बाद राजा रघु ने बाल्यकाल में ही इंद्र देव को हराकर अश्वमेध घोड़ा छुड़ा लिया था। गद्दी पर बैठने के बाद राजा रघु ने अपने गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से विश्वजित यज्ञ अपनी सारी संपत्ति दान कर दी। बाद में विश्वामित्र के शिष्य कौत्स को धन देने के लिए कुबेर पर आक्रमण करके अपने राज्य में सोने की वर्षा करने के लिए बाध्य किया और कौत्स को इच्छानुसार धन दिया। राजा दिलीप को रघुवंश का प्रथम व रघु को द्वितीय राजा कहा गया। इसके बाद अज, दशरथ, राम, कुश सहित 29 राजा हुए।