पिता के अपमान का बदला लेने के संकल्प ने राजा विक्रमादित्य को बना दिया धरती का शक्तिशाली शासक

  • लगभग 2500 वर्ष पूर्व शकों के आतंक से कई राजा और राज्य काफी परेशान थे, शक एक सोची समझी रणनीति के तहत हर तरफ अपनी सत्ता कायम करके आगे बढ़ते जा रहे, पहले उन्होंने भारतवर्ष के बाहर बैक्ट्रिया नाम के एक राज्य को जीता, और उसके बाद भारत की सीमाओं से अन्दर घुसने लगे, उन्होंने पुष्पकलावती और तक्षशिला पर अधिकार कर लिया था, और उसके बाद उन्होंने उज्जियनी पर आक्रमण करके वहां शक संवत की शुरुआत कर दी. उस समय उज्जैन में राजा महेन्द्रादित्य का शासन था, जो राजा विक्रमादित्य के पिता थे. उज्जैन पर अधिकार होने के बाद राजा महेन्द्रादित्य बहुत दुखी हुए, ये उनका अपमान था, और उनके पुत्र राजा विक्रमादित्य ने अपने पिता के अपमान का बदला लेने का संकल्प लिया. उसके बाद राजा विक्रमादित्य ने जंगलों में रहकर भैरव सेना बनाई, जो काल का दूसरा रूप मानी जाती थी. और फिर अपने पराक्रम से मालवा से राजा के बने, और अपने राज्य में शकों की बस्तियों पर आक्रमण करके उन्हें नष्ट किया, धीरे धीरे उन्होंने मालवा प्रदेश से शकों का अंत करके विक्रम संवत की शुरुआत की. और सम्पूर्ण भारत से शकों को समूल नष्ट करने का प्रण लिया. उसके बाद भैरव सेना की मदद से उन्होंने वाराणसी के कुंभ में शकों पर आक्रमण करके उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया, और फिर विक्रमादित्य उज्जैन के राजा बने, उन्होंने अपनी सेना का फिर से गठन किया. उनकी सेना विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बन गई थी, जिसने भारत की सभी दिशाओं में एक अभियान चलाकर भारत को विदेशियों और अत्याचारी राजाओं से मुक्त कर एक छत्र शासन को कायम किया.

उनके वीरतापूर्ण और महान कार्यों के लिए उन्हें विक्रमादित्य की उपाधि प्रदान की गई. विक्रमादित्य की उपाधि भारतीय इतिहास में बाद में भी कई अन्य राजाओं को मिली थी, जिनमें सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय का भी नाम शामिल है. राजा विक्रमादित्य नाम, ‘विक्रम’ और ‘आदित्य’ दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘पराक्रम का सूर्य’ या ‘सूर्य के समान पराक्रमी’. राजा विक्रमादित्य का शासन, अरब देश तक फैला हुआ था, और उन्होंने अपने राज्य में राम राज्य की स्थापना की, और भारत का राजदूत बनकर भारतीय संस्कृति को पूरी दुनियां तक पहुँचाया.

विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे, उनके दरबार में नवरत्न रहते थे. सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्टों और उनका हालचाल जानने के लिए वेश बदलकर नगर भ्रमण करते थे, और अपने राज्य में न्याय व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव प्रयास करते थे. इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रिय राजाओं में से एक माने जाते हैं.