चारों भाई जब थोड़े बड़े हुए तो परंपरा के अनुसार उनका यज्ञोपवीत संस्कार करके उन्हें गुरुकुल भेजा गया। यज्ञोपवीत संस्कार जितना एक धार्मिक परंपरा है उतना ही वैज्ञानिक आवश्यकता भी है।
यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ पहनने के धार्मिक लाभ तो है ही साथ ही बहुत सारे शारीरिक लाभ भी हैं। इस संस्कार के समय गुरु वशिष्ठ द्वारा चारों बालकों को पहली शिक्षा दी गयी– मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव।
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गुरुकुल में भी बहुत कठोर नियम और अनुशासन जैसे ब्रह्मचर्य, भिक्षाटन- किसी अपने सगे संबंधी से न मांग कर जन सामान्य से भिक्षा लेना, कारण अपनों से भिक्षा लेने का प्रचलन रहा तो बड़े घरों के बच्चे कीमती चीजें भिक्षा में लाकर आश्रम में अपनी धाक जमाएंगे और निर्धन बच्चे आत्मग्लानि का आभास करेंगे।
राम जी ने चारों भाइयों सहित व सारे नियम निभाए।राजा के पुत्र होकर भी अपना हर राजसी ठाठ बाट भूलकर मात्र एक विद्यार्थी बनकर रहे।
आज हम वीआईपी कल्चर और स्टेटस के नाम पर अपने विद्यार्थी जीवन में जो व्यवहार करते हैं उसके कारण कई महत्वपूर्ण अनुभवों से वंचित रह जाते हैं। विद्यार्थी का रहन सहन और व्यवहार कैसा होना चाहिए इसका सबसे अच्छा उदाहरण है श्री राम का चरित्र। स्वार्थ, अहंकार, नफरत आदि हमारे व्यवहार में बिल्कुल भी नहीं होने चाहिए।
जय श्रीराम🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Samstag, 16. Mai 2020
शिक्षा पूरी करके घर लौटते ही विश्वामित्र आ गए राम लक्ष्मण को अपने साथ ले जाने के लिए और राम लक्ष्मण ने बिना किसी शर्त के पिता की बात मानकर उनके साथ जाना स्वीकार किया। ऐसा होना चाहिए एक पुत्र का व्यवहार।
अपने प्राणों की परवाह न करते हुए दोनों भाइयों ने ताड़का राक्षसी सहित बहुत सारे भयंकर राक्षसों का वध किया और विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की। ऐसी होनी चाहिए कर्तव्यनिष्ठा।