लंका में हनुमान जी ने एक कुशल गुप्तचर दूत की भांति रामजी का हर काम किया। उन्होंने ना सिर्फ सीता जी का पता लगाया बल्कि रावण के सारे सैन्य बल का भी पता लगा लिया। अशोक वाटिका तहस-नहस कर दी, रावण के पुत्र सहित असंख्य राक्षसों को मार दिया। स्वयं ब्रह्म पाश में बंध कर रावण के दरबार गए और जानबूझकर लीला करके पूछ में आग लगवाई। घूम घूम कर सारा शस्त्रागार देख लिया और सारी लंका जला दी।
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लंका दहन करके जब हनुमान जी वापस आने लगे और उन्होंने सीता जी से राम जी के लिए कोई निशानी मांगी तब सीताजी ने उन्हें चूड़ामणि दी। इस पर हनुमान जी ने कहा कि मैया जैसे आपके बाकी आभूषण राम जी को पड़े हुए मिले इसी तरह यह भी तो मुझे कहीं पड़ा हुआ मिल सकता है। इससे ये कहां सिद्ध होगा कि मैं लंका में आपसे मिलकर गया हूं, कृपया मुझे और कोई साक्ष्य दें।
तब सीता जी ने चित्रकूट में घटित जयंत की बात हनुमान जी को बताई। स्वामी द्वारा दिए गए उत्तरदायित्व को पूरा करना और उसका प्रमाण साथ में लेकर जाना कोई इस प्रसंग से सीखे।
समुद्र तरण, सीता दर्शन, लंका दहन। इन सारे बड़े-बड़े अलौकिक कामों का पूरा श्रेय हनुमान जी ने राम जी को दिया और यही कहा कि इसमें मेरा कुछ नहीं सब आपका प्रताप है। यह होती है स्वामी भक्ति और शिष्टाचार।
जय श्रीराम Down the memory lane…1988…my son Amal in Pushpak Viman with all of us at Ramayan shooting in Umargam
Gepostet von Arun Govil am Samstag, 18. April 2020
हनुमान जी के इस अतुल पराक्रम पर राम जी धन्यवाद स्वरूप उनसे कहते हैं- हनुमान! सीता की खोज करके आज तुम रघुवंश,मेरे और लक्ष्मण के धर्म और हमारी आन की रक्षा के मुख्य साधन बन गए हो। आज तुमने मेरा परम प्रिय कार्य किया है। देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी आज तुम्हारे समान मेरा उपकारी नहीं है। हनुमान तुम्हारे इस उपकार का बदला चुकाना मेरे लिए संभव नहीं है। मैं तो आज जनम जनम के लिए तेरा ऋणी हो गया पुत्र- तेरा ऋणी हो गया।
हनुमान जी चरणों मे गिरकर बोले – प्रभु जिस पर आपकी कृपा हो जाए उसके लिए संसार में कोई भी काम कठिन नहीं होता। सब आपकी ही कृपा से सम्भव हुआ है। यह है एक आदर्श स्वामी और एक आदर्श सेवक का एक आदर्श उदाहरण। वहीं आज के युग में छोटे-छोटे काम करके भी बड़े-बड़े क्रेडिट लेने की होड़ लगी हुई है। जबकि प्रायोरिटी क्रेडिट लेने की नहीं बल्कि अच्छी तरह से काम करने की होनी चाहिए। इस प्रकार अगर हम ध्यान से देखें सुने तो रामायण की हर घटना अपने आपमें विलक्षण है और बहुत काम काम की शिक्षाएं देने वाली है।
सीताजी का पता पाकर विशाल वानर सेना राम जी के नेतृत्व में प्रस्थान के लिए तैयार होती है और राम जी सेना को संबोधित करते हुए कहते हैं-रणबांकुरे वीरों! सैनिक का युद्ध में एक ही लक्ष्य होता है- विजय, हमारा लक्ष्य भी विजय है परंतु किसी एक प्राणी या रावण नाम के केवल एक शत्रु पर नहीं बल्कि अधर्म पर धर्म की विजय, अनीति पर नीति की विजय, अन्याय पर न्याय की विजय, और असत्य पर सत्य की विजय
यही विजय हमारा लक्ष्य है।
So True 😊
Gepostet von Arun Govil am Montag, 27. April 2020
युद्ध में जीतने के लिए दो बातें बहुत आवश्यक है मन में उत्साह और प्रभु पर विश्वास। और जिनमें प्रबल उत्साह और विश्वास होता है वे सत्य और धर्म के पथ पर चलकर अवश्य विजई होते हैं। इस प्रकार सेना का संबोधन और उत्साहवर्धन करके राम जी अपनी सेना सहित सागर तट पर आ जाते हैं।
वानर सेना को संबोधित करते हुए राम जी ने जो भी कहा उसे सुनकर हमें सैनिकों की वास्तविक दशा का आभास होता है। आज हमारी सीमाओं की सुरक्षा में लगे हमारे सैनिक भाई भी इसी प्रकार अपने कर्तव्य पालन में लगे हुए हैं।
उनकी निष्ठा और उनके त्याग को हमें समझना चाहिए और उनके प्रति सम्मान भाव रखना चाहिए। साथ ही सैनिकों के लिए राम जी ने कहा कि उन्हें ग्रामों, नगरों, जनपदों से थोड़ी दूरी बनाकर चलना चाहिए ताकि जनसामान्य को किसी तरह की असुविधा न पहुंचे।
ऐसे हैं हमारे राम- जो दुख में सुख में उत्साह में किसी भी दशा में हों पर सबकी सुविधा असुविधा का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं।