रामराज बैठे त्रैलोका, हर्षित भये गए सब सोका

ब्रह्माजी युगल सरकार की स्तुति करते हैं और निवेदन करते हैं कि प्रभु आपके अवतार का एक बहुत बड़ा उद्देश्य आज पूरा हुआ। आप स्वयं श्रीहरि नारायण हैं कृपया अपनी इस रामावतार रूपी नर लीला के रहस्य को भी सबके लिए उजागर करें।

राम जी कहते हैं –भगवन! वैसे तो हर प्राणी भगवान का रूप है और इसीलिए उसे भगवान कहा जा सकता है परंतु मैं इतना ही मानता हूं कि मैं महाराज दशरथ का पुत्र राम मानव हूँ, जो भगवान और उनकी सत्ता पर पूर्ण विश्वास रखते हुए अपने कर्तव्य के पथ पर हानि लाभ और जीवन मरण की चिंता किए बिना दृढ़ता से चल रहा हूं क्योंकि मानव के हाथ में बस इतना ही है।
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इस अभूतपूर्व उपलब्धि और विशेष अवसर पर दशरथ जी भी प्रकट होते हैं और साधुवाद आशीर्वाद देकर राम जी से कहते हैं कि ‘राम आज तुम मुझसे कोई भी वर माँग लो, मैं बहुत प्रसन्न हूं।

राम जी उनसे कहते हैं-अगर आप प्रसन्न हैं तो मेरी माता कैकई को उनके परित्याग का आपका दिया हुआ श्राप वापस ले लीजिए, उन्हें क्षमा कर दीजिए।

दशरथ जी कहते हैं ‘राम तुम जैसा दिव्य पुत्र पाकर सारा मोह दूर हो गया है। हम अपना श्राप वापस लेते हैं। — जिस माता के कारण 14 वर्षों का वनवास हुआ, इतनी यातनाएं झेलनी पड़ी, उन माता के सुख और संतोष का ध्यान राम जी को सबसे पहले आया। यह है राम का परिवार प्रेम, राम का मातृ प्रेम।
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Jai Shriram 🙏#goodmorning

Gepostet von Arun Govil am Dienstag, 9. Juni 2020

अयोध्या वापस कैसे जाया जाए इस चिंता पर हनुमान जी कहते हैं ‘प्रभु अपनी पीठ पर बिठाकर मैं आप सब को अयोध्या ले चल सकता हूं। सेवक के रहते स्वामी को चिंता कैसी? विभीषण जी कहते हैं कि प्रभु पुष्पक विमान किस दिन काम आएगा, चलिए उसी पर हम सब चलते हैं।

पुष्पक एक ऐसा विलक्षण विमान था जो आवश्यकतानुसार छोटा बड़ा हो सकता था। ऐसा कहते हैं कि उसमें एक आसन हमेशा खाली रहता था और वह अपने स्वामी की आज्ञा अनुसार- आज की भाषा में ‘वॉइस कमांड’ पर चलता था।।

सीता राम लक्ष्मण हनुमान विभीषण सुग्रीव अंगद जामवंत नल नील आदि पुष्पक विमान पर सवार होते हैं राम जी प्रत्येक सेनानी का आभार व्यक्त करते हैं और विमान उत्तर दिशा की ओर चल पड़ता है। प्रयाग में महर्षि भरद्वाज के आश्रम में विमान उतरता है रामजी भरद्वाज जी का आशीर्वाद लेते हैं और हनुमान जी को भरत जी के पास अपना संदेशा देकर भेजते हैं।
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नंदीग्राम में भरत जी निराश हो रहे हैं कि अभी तक राम जी का कोई समाचार क्यों नहीं आया?? इतने निराश कि वशिष्ठ जी से कहते हैं कि अगर संध्या से पहले राम जी नहीं आए तो मैं चिता में कूद जाऊँगा।

इस पर वशिष्ठ जी कहते हैं -‘इतिहास बदलने के लिए एक क्षण भी पर्याप्त होता है भरत! समय से पहले कभी भी निराश और हताश नहीं होना चाहिए। और तभी हनुमान जी राम जी के आने का संदेश लेकर आते हैं और सारे अयोध्या में राम जी के स्वागत में महोत्सव की तैयारी होने लगती है
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Jai Shriram 🙏#goodmorning

Gepostet von Arun Govil am Donnerstag, 4. Juni 2020

स्वदेश वापस आते ही विमान से उतरकर सबसे पहले राम जी अपने देश की मिट्टी अपनी जन्मभूमि को दंडवत प्रणाम करते हैं। गुरुदेव वशिष्ठ को प्रणाम करने के बाद माताओं में सबसे पहले कैकई माता को मिलकर फिर सुमित्रा और कौशल्या जी से मिलते हैं। कौशल्या माता कहती हैं– ‘जा अपने पगले भाई को संभाल राम! उसने तो तुझ से भी बड़ी तपस्या की है।

राम और भरत मिलाप बस देखा जा सकता है। उस भाव को ना लिखा जा सकता है ना कहा जा सकता है ना समझा या समझाया जा सकता है। भाई का भाई के प्रति प्रेम ‘न भूतो न भविष्यति’ ।

भरत के त्याग भरत की सेवा और भरत के प्रेम को देखकर रामजी गदगद कंठ से बस यही कहते हैं– भरत मैंने तो वन में 14 वर्ष बिताए पिता की आज्ञा के कारण परंतु तुमने तो केवल भावना और भ्रातृ प्रेम के कारण 14 वर्ष राजधानी के बीच रहकर भी सन्यासियों की तरह बिताए। भरत तुम हम सब भाइयों में सबसे महान हो।

लक्ष्मण जी के लिए गुरु वशिष्ठ कहते हैं -‘लक्ष्मण तुमने मानव समाज को सेवा का वह आदर्श सिखाया है जिसका दूसरा उदाहरण मिलना कठिन होगा।’ माता सुमित्रा कहती हैं-‘लक्ष्मण तुमने मेरे दूध की लाज रख ली बेटे।’

भरत जी कहते हैं-‘लक्ष्मण सबसे भाग्यवान तो तू है मेरे भाई। साधु वेश तो मैंने भी धारण किया पर भैया के चरणों में सतत बैठने का सौभाग्य तुझे मिला।’

शत्रुघ्न जी के भावुक होने पर लक्ष्मण जी कहते हैं -‘अरे पगले जब सारा उत्तरदायित्व संभालने के लिए बड़े भाई हों तो छोटे भाइयों को क्या चिंता’। धन्य है ऐसी मां, धन्य हैं ऐसे बेटे और धन्य हैं ऐसे भाई। काश आज भी भाई भाई में ऐसे प्रेम का एक अंश भी कहीं होता तो संसार में इतने संघर्ष ना होते।

सबसे यथा योग्य मिलकर, सब का सत्कार करके और अपने सभी मित्रों का गुरुदेव से और माताओं से परिचय करा के सन्यासी वेश त्याग कर राम सिया लक्ष्मण राजभवन पधारते हैं
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माता कैकेई के कक्ष में भरत जी के ना जाने पर रामजी उन्हें अपने साथ कक्ष में ले जाते हैं और कहते हैं। भरत माता का अनादर करना सबसे बड़ा पाप है। जो मां 9 महीने तक मानव को अपने गर्भ में धारण करके अपने रक्त से उसका पोषण करती है वह कैसी भी हो वंदनीय है पूजनीय है। राम के विचार राम के आदर्श यदि संसार का हर बेटा मान ले तो कोई मां, कोई पिता वृद्धाश्रम ना रहे।
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महाराज जनक मंत्री सुमंत्र जी और राम जी के सभी सखाओं के साक्ष्य में गुरुदेव वशिष्ठ जी द्वारा प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक संपन्न होता है और तीनों लोकों में परमानंद की लहर दौड़ जाती है।