रामावतार की भूमिका से आश्वासन तक

रामायण एक महाकाव्य तो है ही साथ ही हमारे गौरवशाली इतिहास का जीवंत प्रमाण भी है। जीवन के हर एक रिश्ते को पूरी निष्ठा और उचित ढंग से निभाने का जो प्रमाण और आदर्श रामायण में मिलता है वो दुनिया के किसी भी साहित्य में मिलना असंभव सा है।

माता पिता का बच्चों के प्रति, बच्चों का माता-पिता के प्रति, भाई का भाई के प्रति,मित्र का मित्र के प्रति, गुरु का शिष्य के प्रति, शिष्य का गुरु के प्रति, राजा का प्रजा के प्रति, प्रजा का राजा के प्रति, सास का बहू के प्रति, बहू का सास के प्रति, देवर का भाभी के प्रति, भाभी का देवर के प्रति।

मतलब मानव जीवन से जुड़े जितने भी रिश्तों की हम कल्पना कर सकते हैं उनको निभाने और बनाए रखने का जो प्रमाण रामायण में है वह अन्यत्र नहीं है। इंसान ही नहीं बल्कि रामायण हर जीव के प्रति इंसानों के कर्तव्यों का बोध कराती है।

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बड़ी खुशी की बात होगी यदि रामायण का पारायण (पठन पाठन) हर क्षेत्र में हो, हर संस्थान में हो, हर घर में हो और रामायण की शिक्षाएं संसार के हर मानव के मन में अपनी जगह बनाएं और हर मानव के व्यवहार में आएं।

हमें निज धर्म पर चलना, सिखाती रोज रामायण।

सदा शुभ आचरण करना सिखाती रोज रामायण।।

मानव का एक ही धर्म है मानवता और जिस दिन संसार का हर व्यक्ति धार्मिक हो गया उस दिन संसार का सारा कष्ट समाप्त हो जाएगा। सर्वत्र सुख शांति व्याप्त हो जाएगी। उसी धर्म, मर्यादा और सत्य को स्थापित करने तथा धरती सहित सभी देवों को दिए अपने वचन निभाने के लिए भगवान श्रीहरि विष्णु धरती पर मानव रूप में अवतार लेते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है-

बिप्र धेनु सुर सन्त हित,लीन्ह मनुज अवतार।

निज इच्छा निर्मित तनु,माया गुन गो पार।।

 

ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों के हित के लिए भगवान ने अपनी इच्छा से निर्मित शरीर धारण किया जो माया के गुणों से रहित है।

धरती का प्राकृतिक संतुलन जब-जब बिगड़ता है तब तब ईश्वर किसी न किसी रूप में आकर धरती के सारे दुख दूर करते हैं और अपनी मानव लीला से छोड़ जाते हैं सारे संसार के लिए असंख्य आदर्श उदाहरण जिनको अपने जीवन मे उतार कर मनुष्य स्वयं के साथ साथ सारे संसार को सुखी रख सकता है।