‘जब इंसान पैदा होता है, तो एक प्राणी मात्र होता है, उसे नहीं पता होता वो कि, वो गरीब के घर पैदा हुआ है, या राजा के घर. फिर उसकी नन्हीं उँगलियाँ जिन हाथों को सपर्श करती हैं, अपनी उँगलियों में जिसकी उँगलियों को उलझाने का प्रयास करती हैं, उसी स्पर्श से वो अपनत्व की पहचान करना शुरू करता है. परवरिश की शुरुआत वहीँ से होती है. पहले उँगलियों को पकड़ना सिखाते हैं, फिर उन्हीं उँगलियों की पकड़ के भरोसे चलना सिखाते हैं, ये विश्वास है, जो उँगलियों के ज़रिये खून में पहुँचता है, और वहीँ से जीवन में. हमारे साथ हर पल किसी के होने का आभास होता है. और यही परवरिश तय करती है कि, हमें जीवन में क्या बनना है, इंजिनियर, डॉक्टर, सैनिक या प्रधानमंत्री. माँ बाप ही तो होते हैं, जो जीवन को दिशा देते हैं, संस्कार देते हैं, और अपने बच्चों को दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार देते हैं.
औलाद से प्यारा माँ बाप को और कोई नहीं होता, रामायण में भी ये बताया गया है. जैसे ही राजा दशरथ से, उनकी रानी कैकई राम के वनवास का वर मांगती हैं, उसी क्षण जैसे राजा दशरथ के प्राण हलक में आ जाते हैं. लेकिन उन्हें लगता है कि, शायद कुछ चमत्कार हो जाए, और श्रीराम का वनवास टल जाए, और इस उम्मीद में वो जिंदा रहते हैं, पर रामजी के वन में जाते ही पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग देते हैं. माँ बाप से बड़ा कोई नहीं होता. श्रीराम ने भी ये साबित किया, राजा के पुत्र होते हुए भी पिता के दिए वचन का सम्मान करना ही उनका जीवन था. छोड़ दिया एक ही पल में सब कुछ, सुख, वैभव, राज पाट, और बन गए सन्यासी. प्रस्थान कर लिया वन के लिए, बिलकुल भी शिकायत नहीं, ना जीवन से, ना महारानी कैकई से, ना भाग्य से और न विधान से. प्रभु राम ही कर सकते थे ये, और नीयति ने भी यही तय कर रखा था.
आज भी ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जहाँ माँ बाप ने, अपनी पूरी जिंदगी अभावों में निकालकर अपने बच्चों की हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरी की, तो ऐसे बच्चे भी हैं, जो अपने माता पिता की उम्मीदों पर खरे उतरे. अच्छे संस्कारों की नींव माँ बाप ही रखते हैं, जो बाद में एक मजबूत दीवार बनकर दुनिया के सामने खड़ी होती है.
जीवन विषमताओं से भरा होता है, यहाँ कदम कदम पर नई चुनौतियां इंसान के सामने सर उठाकर खड़ी होतीं हैं, लेकिन जो अपने माँ बाप का सम्मान करते हैं, और उन्हें खुश रखते हैं, वो दुनियां की हर लड़ाई में जीत हासिल करते हैं. और किसी भी चुनौती का सामना हंसकर कर लेते हैं, क्योंकि माँ बाप से बड़ा कोई नहीं होता. ईश्वर ने भी मानव रूप में धरती पर जन्म लेकर स्वयं ये माना है कि, माँ बाप का स्वरुप भगवान से भी बड़ा होता है. इसीलिए तो कहते हैं, ‘इधर उधर मत तलाशो, जिसकी उँगलियाँ पकड़कर चलना सीखा, उसे ही भगवान कहते हैं.’