हमारी सभी पौराणिक कथाओं की महिमा महान है. इस धरती पर ईश्वर ने कई बार अवतार लिया और समूची मानवजाति का उद्धार किया. भगवान, श्रीराम और श्रीकृष्ण से लेकर भगवान परशुराम तक सभी को साक्षात नारायण का अवतार माना जाता है. इस सृष्टि के निर्माण के बाद ईश्वर ने धरती पर मनुष्य के बीच धर्म और अधर्म की पहचान भी बताई. और ये बताने के लिए ईश्वर के अवतार से लेकर महान ऋषि मुनियों तक सबकी बहुत अहम भूमिका रही है.
परमपिता ब्रह्मा ने समस्त ब्रह्मांड की संरचना की. और ऐसा करने के क्रम में दस प्रजापति पैदा किए थे. महर्षि पुलस्त्य भी उनमें से एक थे, और उनके पुत्र का नाम था विश्रवा. उसके बाद वरवर्णिनी नामक कन्या से ऋषि विश्रवा का विवाह हुआ. और इन दोनों ने धन के स्वामी कुबेर को जन्म दिया.
तो वहीँ समुद्र मंथन में देवताओं से पराजित होने के बाद दैत्य चाहते थे कि, उनकी शक्तियां बढ़ें, और इसके लिए उन्हें ऋषि मुनियों का साथ चाहिए था. उसके बाद राक्षस कुल के तताका और सुमाली की बेटी कैकसी ने भी अपने माता पिता की इच्छानुसार ऋषि विश्रवा से अपनी पत्नी के रूप में उन्हें स्वीकार करने का अनुरोध किया. उसके बाद उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ, और उन्होंने रावण को जन्म दिया. तो इस तरह से कुबेर और रावण सौतेले भाई थे.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भी रावण पुलत्स्य मुनि का पौत्र था अर्थात् उनके पुत्र विश्रवा का पुत्र था. विश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी. वरवर्णिनी से कुबेर का जन्म हुआ और उसके बाद कैकसी से रावण पैदा हुआ.
कुबेर को अपने पिता विश्रवा से लंका विरासत में मिली. एक अच्छा बेटा होने के नाते, कुबेर ने अपनी सारी संपत्ति अपने सौतेले भाई रावण के साथ भी साझा की. लेकिन ब्रह्मा से सभी प्रकार के वरदान प्राप्त करने के बाद, रावण ने लंका से कुबेर को बाहर निकाल दिया, और खुद उसका स्वामी बन गया.