सब दिन होत न एक समान

जनक जी से माता सुनैना की अस्वस्थता का समाचार सुनकर राम जी लक्ष्मण जी के साथ जनकपुर आते हैं। सुनैना माता की आत्मीयता और ममता पाकर रामजी का संकोच दूर होता है और वो भावुकता से कह उठते हैं –
माता आज आपने अपने राम को एक नया जीवनदान दे दिया
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महाराज जनक और माता सुनैना से उनका निश्छल वात्सल्य और ममत्व पाकर राम जी के मन का बोझ और संकोच जाता रहा और उचित समय देखकर उन्होंने अयोध्या वापसी की आज्ञा मांगी। विदा करने से पहले जनक जी उन्हें अपने कुल देवता के मंदिर ले जाते हैं और देव वंदन के बाद जनक जी कहते हैं-‘राम आज मैं तुम्हें जीवन का एक मूल मंत्र देता हूं, जीवन में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों का आना अनिवार्य है। शुक्ल पक्ष की चांदनी सर्वदा नहीं रह सकती उसी प्रकार कृष्ण पक्ष का अँधेरा सदा नहीं रह सकता। काल का धर्म है बदलना,दिन को रात में और रात को दिन में।

यही सोचकर मनुष्य को कभी हताश नहीं होना चाहिए। दुख के अंधेरों में मानव को अपने धर्म के प्रकाश से रास्ता बनाना चाहिए। निराशा की धरती पर आशा के बीज बोने चाहिए। यही पुरुषार्थ है, यही मानव कर्तव्य है और यही मानव आदर्श है।’

जनक जी का उपदेश और आशीष शिरोधार्य कर राम जी लक्ष्मण जी सहित अयोध्या वापस आ जाते हैं। इतनी विपरीत और दुखद परिस्थितियों में भी रिश्तो में संतुलन बनाए रखना कोई जनक जी और सुनैना माता से सीखे। यही परिस्थिति अगर आज किसी परिवार में बन जाए तो लड़की के माता-पिता लड़के वालों का जीना मुश्किल कर दें।
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Jai Shriram 🙏#goodmorning

Gepostet von Arun Govil am Sonntag, 14. Juni 2020

अयोध्या में गुरुदेव महर्षि वशिष्ठ ने भी जनक जी के दिए हुए इस गूढ़ ज्ञान का समर्थन किया और राम जी को क्रियाशील होकर राजकाज में नए-नए कीर्तिमान बनाने का परामर्श दिया।

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लक्ष्मण जी, महामंत्री सुमंत्र जी के साथ चर्चा करते हुए सीताराम जी को लेकर बहुत चिंतित और दुखी हो जाते हैं तो सुमंत्र जी उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि प्रभु श्री राम श्री हरि विष्णु का और महारानी सीता स्वयं जगदंबा महालक्ष्मी का अवतार हैं। जो भी हो रहा है सब उन्हीं की लीला है।’

इस बात को राम जी से लक्ष्मण जी तब पूछते हैं जब रात को सोते समय वे राम जी के चरण दबा रहे होते हैं।

राम जी कहते हैं – लक्ष्मण! समस्त प्राणी मात्र के अंदर भगवान की ही ज्योति प्रकाशित है। दिव्य दृष्टि से देखोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि स्वयं तुम ही भगवान हो। इसी प्रकार आर्य सुमंत्र भी भगवान का ही रूप हैं। जब यह जान जाओगे तो सारी दुविधा मिट जाएगी।

सबकुछ जानने के बाद भी मानव इतना दुखी क्यों होता है भैया?? लक्षमण जी के ऐसा पूछने पर रामजी ने फिर समझाया- यही इस शरीर का गुण है।इस शरीर के अंदर जो मन है वही दुख और सुख, पीड़ा और प्रसन्नता की भावनाओं का वाहन है और माया हर प्राणी की परीक्षा उसी मन के द्वारा लेती है।

सबसे बड़े महत्व की बात है कि प्राणी दुख और सुख के समय कैसा व्यवहार करता है।देखो लक्ष्मण होनी तो होगी ही परंतु उसका सामना प्राणी किस प्रकार करता है यह महत्वपूर्ण बात है। इसलिए भविष्य को जानने के फेर में मत पड़ो वर्तमान का जो कर्तव्य है उसे निभाओ, भविष्य तो स्वयं ही नतमस्तक होकर तुम्हारे सामने आ जाएगा। होनी तो होकर ही रहेगी पर हम अपने धर्म पर अटल रहें।

इस प्रकार लक्ष्मण जी के बहाने रामजी ने सारी मानव जाति को धर्म और कर्तव्य का उपदेश दिया है। मानव कल्याण और विश्व कल्याण के लिए राम जी की सीख हर इंसान को अपने हृदय में और व्यवहार में धारण करनी चाहिए।