3 दिन तक विनय पूर्वक पूजा प्रार्थना करने के बाद भी जब सागर ने कोई उत्तर नहीं दिया तो रामजी क्रोधित होकर बोल पड़े। तुम राम की विनम्रता को उसकी असमर्थता जानकर जड़ बने हुए हो संसार ने आज तक राम की कृपा देखी है उसका कोप नहीं देखा आज संसार राम का क्रोध भी देखेगा।
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राम के पास संसार के सारे समुद्रों को सुखाने की शक्ति थी परंतु उन्होंने मर्यादा और प्रकृति का नियम बनाए रखने के लिए 3 दिनों तक सागर से विनय की। इसके बाद भी सागर द्वारा उनकी अवहेलना करने पर राम को विवश होकर क्रोध करना पड़ा। राम के क्रोध से भयभीत समुद्र ने नल नील द्वारा अपने ऊपर सेतू बनाने का उपाय बताया। नल नील की इस अद्भुत क्षमता के बारे में जानकर रामजी ने उनसे कहा —
आपने अपने इतने महान शिल्प विज्ञान को अभी तक हमसे छुपाए रखा। उनका उत्तर था ‘क्षमा करें प्रभु! बिना पूछे हम अपने गुणों को किसी से नहीं बताते।’
इस बात का हमें भी ध्यान रखना चाहिए कि जब तक बहुत आवश्यक ना हो और पूछा न जाए तब तक हमें अपने गुण, ज्ञान और योग्यता का प्रदर्शन या बखान नहीं करना चाहिए।
Jai Shriram 🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Mittwoch, 3. Juni 2020
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उस समय की शिल्प कलाकार अद्वितीय निर्माण सेतुबंध प्रारंभ हो गया और राम जी वहीं सागर तट पर शिवलिंग स्थापित करके शिव जी का पूजन करने लगे। भगवान श्रीराम अपने आराध्य देव शिव जी का पूजन करते रहे और सुग्रीव की संपूर्ण वानर सेना सेतु का निर्माण करती रही।
मात्र 5 दिनों में सेतु बनकर तैयार हो गया। हनुमान जी ने कार्य पूर्ण होने की सूचना दी तो राम जी ने अपने आराध्य शिव जी को प्रणाम करते हुए कहा- हे शंकर मेरे प्रभु मेरे इष्ट देव! आप की असीम अनुकंपा से ही असंभव सा दिखने वाला यह कार्य इतनी सहजता से संपन्न हो गया। आपके श्री चरणो में राम का कोटि-कोटि प्रणाम स्वीकार हो। यह है राम का आदर्श जिनमें कभी भी अपने परमेश्वर होने का अभिमान नहीं दिखता भगवान होने का अभिमान नहीं दिखता।
इसके बाद राम जी ने जगत कल्याण के लिए शिवजी से एक और प्रार्थना की। मेरे समस्त अनुयायियों को अपनी भक्ति प्रदान करो। आपकी भक्ति से विमुख होकर जो मेरे पास आए उसे मेरी सेवा का कोई फल प्राप्त ना हो। प्रभु आपके अनंत नाम हैं, अपने सेवक राम की ओर से एक नाम और स्वीकार कर लीजिए। आज से यहां आपको लोग श्री रामेश्वर के नाम से जानेंगे ॐ श्री महादेव रामेश्वराय नमः ।
दृढ़ निश्चय आत्मबल की प्रबलता और ईश्वर पर अटूट विश्वास ने यह असंभव सा कार्य संभव किया। राम जी की सारी सेना लंका पहुंच गई और पड़ाव डाल दिए। महाराज सुग्रीव द्वारा रामजी से विश्राम करने के अनुरोध पर राम जी ने कहा। सोते-सोते जागना और जागृत अवस्था में ही विश्राम कर लेना, यही सैनिक का सच्चा अर्थ है।