रामराज की न्याय व्यवस्था

कागभुसुंडि जी एक ऐसे महात्मा हैं जिनको आत्मज्ञान हो चुका है और अमर हैं। अपने धाम से ही राम जी की सारी लीलाएं देख रहे हैं – चारों भाई एक साथ जलपान कर रहे हैं तभी गुप्तचर आता है और राम जी बिल्कुल अकेले उससे मिलने जाते हैं।

मांडवी के पूछने पर भरत जी गुप्तचरों के बारे में कहते हैं–‘गुप्तचर ही तो राजा की आंखें और कान होते हैं जिनके द्वारा राजा एक ओर अपनी प्रजा और दूसरी ओर अपने अधिकारियों पर दृष्टि रखता है कि कब कौन क्या कर रहा है। जो राजा केवल अपने दरबारियों और चाटुकारों की बातें सुनता रहे वो कभी भी , किसी भी षड्यंत्र का शिकार हो सकता है।’

स्पष्ट संकेत ये है कि सफल शासन के लिए एक बहुत ही गुप्त और प्रबल गुप्तचर व्यवस्था होनी बहुत जरूरी है।
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राज्यसभा में नए मंत्रिमंडल के साथ प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर चर्चा करते हुए राम जी कहते हैं–प्रजा से ‘कर’ लेना आवश्यक है परंतु राजा को ‘कर’ उसी प्रकार लेना चाहिए जैसे सूर्य धरती से जल सोखते हैं। जलाशयों में और नदियों में जहां जल अधिक है वहां से अधिक जल, और भूमि पर जहां जल थोड़ा हो वहां से कम जल।

जल सोख कर उससे मेघ बनाए जाते हैं और मेघ वही जल पृथ्वी पर वापस लौटाते हैं परंतु पूरी पृथ्वी पर बराबर बराबर वृष्टि करके। यही राजा का कर्तव्य है कि राज्य के कुछ प्रमुख व्यक्तियों से इकट्ठा किया गया ‘कर’ प्रजा के हित के कामों में बराबर बराबर बांट दें।
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रामराज की न्याय व्यवस्था

आधी रात को न्याय मांगने आई एक स्त्री को प्रहरियों द्वारा ये कहकर लौटा दिया जाता है कि कल दिन में दरबार में आना। राम जी इस बात पर नाराज होते हैं और कहते हैं– यदि न्याय में देरी की जाए तो वह न्याय नहीं अन्याय हो जाता है और कभी-कभी उसका परिणाम बहुत भयानक होता है।

हमारे विचार में यदि प्रजा में से कोई भी व्यक्ति किसी तकलीफ से जागता हो तो राजा को आराम से सोने का कोई अधिकार नहीं है। प्रजा के किसी भी व्यक्ति को राजा के पास आने में उतनी ही सुविधा होनी चाहिए जितनी एक सन्यासी की कुटिया में जाने में।

ऐसा है राम का न्याय और राम की न्याय व्यवस्था जो राज दरबार के महामंत्री से लेकर समाज के अंतिम नागरिक तक सब के लिए समान रूप से उपलब्ध है।

आज न्याय के लिए ना सिर्फ लंबी-लंबी प्रतीक्षा करनी होती है बल्कि कभी-कभी न्याय की प्रतीक्षा में पीड़ित दुनिया ही छोड़ देता है। रसूख और धन के अभाव और दबाव में न्याय कितना निष्पक्ष रह गया है यह किसी से छिपा नहीं है।
इसीलिए बहुत जरूरी है रामायण और बहुत जरूरी है राम का आदर्श।