रामटेक तीर्थ:वनवास के दौरान यहां रुके थे श्रीराम,अगस्त्य ऋषि ने उन्हें को दिया था ब्रह्मास्त्र

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने मानव रूप में इस धरती पर जन्म लिया, और समस्त मानव जाति का उद्धार किया. जहां जहां वो गए, वो धरती सदैव के लिए तीर्थ बन गई. ऐसी ही जगह है महाराष्ट्र में, नागपुर से करीब 33 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ियों पर रामटेक नाम का तीर्थ है. जानकारी के अनुसार यह तीर्थ स्थल भगवान राम को समर्पित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 14 वर्ष के वनवास के दौरान भगवान श्रीराम ने 4 महीने यहीं बिताए थे. और एक जानकारी देना चाहेंगे कि इस तीर्थ के विषय में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और पद्म पुराण में भी जिक्र किया है.

छोटी सी पहाड़ी पर बना है ये मंदिर

बहुत सुंदर दिखने वाला यह मंदिर किले की तरह दिखाई देता है. रामटेक का ये मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है, जिसे ‘गढ़ मंदिर’ भी कहते हैं. इस मंदिर के पूरब की दिशा की ओर सुरनदी बहती है. रामनवमी वाले दिन यहां मेला लगता है दूर दूर से लोग यहां आते हैं. जानकारी के अनुसार इस मंदिर को राजा रघु खोंसले ने एक किले के रूप में बनवाया था.

रामायण में मिलता है उल्लेख

इस स्थान के विषय में वाल्मीकि रामायण में भी बताया गया है कि जब श्रीराम, अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ दंडकारण्य से पंचवटी की ओर बढ़ रहे थे तो अचानक बारिश शुरू हो गई. मौसम मानसून का था ऐसे में 4 महिने उन्होंने इसी स्थान पर बिताए थे.

इसके अलावा यहां भगवान राम जी की मुलाकात अगस्त्य ऋषि से हुई थी. यहां पर उन्होंने भगवान राम को ब्रह्मास्त्र शस्त्र दिया था. इससे ही रावण का वध किया गया था.

इस स्थान के बारे में पद्मपुराण में बताया गया है, कि श्रीराम ने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ यहां के सभी ऋषि -मुनियों को भोजन कराया था.

कालिदास ने लिखी थी मेघदूत

यहां के मंदिर का निर्माण पत्थरों से किया गया है. खास बात यह है कि ये पत्थर आपस में जुड़े नहीं है बल्कि एक के ऊपर एक रखे हुए हैं. और एक जानकारी देना चाहेंगे कि इस मंदिर में एक तालाब भी है जिसका पानी पूरे साल एक समान रहता है. अर्थात् पानी कम नहीं होता. रामटेक मंदिर के रास्ते में एक और जगह का वर्णन मिलता है, जिसका संबंध महाकवि कालिदास जी से है. इस स्थान को रामगिरि भी कहा जाता है. और ऐसा माना जाता है कि इसी जगह पर कालिदास जी ने मेघदूत लिखी थी.