जहां पड़े भगवान राम के चरण:सतना के रामवन आज भी जुड़ी हैं भगवान श्रीराम की यादें

वनवास होने के बाद भगवान श्रीराम, अपने भाई लक्ष्मणजी और पत्नी सीताजी के साथ देश के कई हिस्सों में पहुंचे और वहां शांति और धर्म की स्थापना की। इस दौरान वे मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में सरयू, गंगा, नर्मदा और महानदी सहित कई नदियों के किनारे ठहरे और उन्होंने कई ऋषि – आश्रमों का भ्रमण किया। ऋषि अत्रि के आश्रम से भगवान श्रीराम आज के मध्यप्रदेश के शहर सतना पहुंचे, जहां रामवन हैं। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध, सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनियों के आश्रमों में गए। बाद में वे सतीक्ष्ण आश्रम वापस भी आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में श्रीराम के पहुंचने की कई निशानियां मौजूद हैं- जैसे मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि। ImageSource

राम वहां से आधुनिक जबलपुर, शहडोल (अमरकंटक) गए होंगे। शहडोल से पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम ‘रामगढ़’ है। 30 फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे ‘सीता कुंड’ कहा जाता है। यहां वशिष्ठ गुफा है। दो गुफाओं के नाम ‘लक्ष्मण बोंगरा’ और ‘सीता बोंगरा’ हैं। शहडोल से दक्षिण-पूर्व की ओर बिलासपुर के आसपास छत्तीसगढ़ है।

वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर तक है।

वास्तव में दंडक राक्षस के कारण इस जंगल का नाम दंडकारण्य पड़ा। यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसके राज्य का विस्तार इंद्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोइंदारी (गोदावरी) तट तक तथा अलीपुर, पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक था। मौजूदा बस्तर को ‘बारसूर’ नाम से बाणासुर ने ही बसाया था, जो इन्द्रावती नदी के तट पर था। यहीं पर उसने ग्राम देवी कोयतर मां की बेटी माता माय (खेरमाय) की स्थापना की। बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां अब गोंड जाति के लोग रहते हैं तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है। इसी दंडकारण्य का ही एक हिस्सा आंध्रप्रदेश का शहर भद्राचलम है। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर बना है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर बिताए थे। दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

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दंडकारण्य क्षेत्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक आश्रम था। इस तरह भगवान श्रीराम का दंडकारण्य से बहुत निकट का संबंध है।