धार्मिक शास्त्रों में रावण को महापराक्रमी, महाशक्तिशाली, महाज्ञानी और भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त बताया गया है। मान्यता है कि रावण धरती पर मौजूद सबसे बुद्धिमान लोगों में से एक था। हालांकि उसमें मौजूद अवगुणों के कारण आगे चलकर उसका विनाश हुआ। रावण के अवगुणों के कारण सनातन धर्म में उसे अधर्म और बुराई का प्रतीक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार रावण के दस सिर उसमें मौजूद उसके दस अवगुणों को दर्शाते हैं। यह दस अवगुण हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय।
काम – इस अवगुण का मतलब है धन और यश कमाने की चाहत। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि काम से मनुष्य में क्रोध और अन्य अवगुणों का जन्म होता है।
क्रोध – इस अवगुण का मतलब है दूसरे लोगों की उपेक्षा करना। क्रोध में आकर लिए गए निर्णयों से बाद में पछताना पड़ता है।
लोभ – लोभ या लालच एक अवगुण है जो रावण में था। लोभ करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी खुश नहीं रह सकता।
मोह – किसी भी चीज या व्यक्ति से जरुरत से ज्यादा मोह करना हमारे लिए नुकसानदायक होता है। मोह हमारे विवेक को खत्म कर देता है और हम अपने मन व भावनाओं के गुलाम बनकर रह जाते है।
मद – मद का अर्थ होता है तुम जो चाहते हो वह मिल जाए। इस अवगुण के कारण हमें जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
मत्सर – इस अवगुण का अर्थ होता है किसी की सम्पत्ति, सुख या वैभव को देखकर दुखी होना। इस अवगुण के व्यक्ति हमेशा दुखी रहता है।
घृणा – प्रेम दूसरों को आकर्षित करता है जबकि घृणा विकर्षित करती है। घृणा से मनुष्य में क्रोध और मानसिक रोग उत्पन्न होता है।
ईर्ष्या – ईर्ष्या से व्यक्ति स्वयं को ही हानि पहुंचाता है। इससे दूसरे का कुछ नहीं बिगड़ता है। ईर्ष्या मन का संतोष भी छीन लेती है।
द्वेष – द्वेष से मनुष्य को कोई लाभ नहीं मिलता बल्कि नुकसान ही होता है। द्वेष के कारण व्यक्ति के मन में प्रतिशोध और हिंसा की भावना जन्म लेती है।
भय – भय एक नकारात्मक भावना है और यह एक रोग के समान है। भय मनुष्य की सोचने-समझने की शक्ति को खत्म कर देता है।