रावन जबहिं बिभीषन त्यागा

रावण दरबार में विभीषण, रावण को समझाते हुए कहते हैं कि राम को सिर्फ एक मानव या हनुमान को सिर्फ एक वानर समझना उचित नहीं है। उनके अलौकिक कार्यों और व्यवहारों पर ध्यान देना चाहिए। दुश्मन को कभी भी हमें हल्के में नहीं लेना चाहिए और यह सत्य भी है, जोश में आकर या अहंकार के कारण किसी से दुश्मनी नहीं करनी चाहिए अन्यथा सिर्फ नुकसान होता है।

रावण के सभी मंत्री और सचिव उसकी चाटुकारिता करने और उसके दम्भ को बढ़ाने में लगे हैं उचित सलाह कोई नहीं दे रहा। जिस राजा के मंत्री राजा के भय से या अपने स्वार्थ के लिए उसकी चाटुकारिता करते हों और उचित सलाह न देते हों उस राजा और राज्य का विनाश हो जाता है। इसी प्रकार यदि वैद्य लालच या भय में आकर उचित उपचार ना करें तो रोगी मर सकता है। गुरु – शिक्षक अगर डर या लालच में आकर बच्चों को उचित शिक्षा न दे तो बच्चों के भविष्य का विनाश हो जाता है। इसीलिए सलाहकार, डॉक्टर और शिक्षक का निर्भय और निष्पक्ष होना बहुत आवश्यक है।
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जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना।

अर्थात जहाँ अच्छे विचार वाले लोग साथ में रहते हैं,आपस में प्रेम होता है वहाँ सुख संपत्ति बने रहते हैं और जहाँ विपरीत विचारधारा वाले होते हैं, कलह बना रहता है वहाँ सिर्फ विपत्तियां रहती हैं, सुख संपत्ति कभी नहीं आते।

Jai Shriram 🙏

Gepostet von Arun Govil am Montag, 1. Juni 2020

विनाश काले विपरीत बुद्धि– रावण विभीषण की कोई बात नहीं सुनता और लात मार कर लंका से चले जाने को कहता है।

अपमानित विभीषण कहते हैं -‘भरी सभा में किसी को अपमानित करना उसे मृत्युदंड देने के बराबर है, इसलिए मैं आपके लिए मर गया।’

और वहां से चले जाते हैं। इस बात का ध्यान हमें भी हमेशा रखना चाहिए कि हम अपने स्वार्थ या अहंकार में आकर ना अकेले में ना सबके सामने, कभी किसी का अपमान ना करें।
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रावण अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और अहंकार के कारण पूरे देश को विनाश की ओर ले जा रहा है। यह देख कर और अपने विश्वस्त सचिव साथियों की धर्म संगत सलाह पर विभीषण अपनी माता कैकसी की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर अपने कुछ सचिवों और साथियों के साथ सागर के पार राम जी के पास चले आते हैं।

विभीषण के प्रसंग से हमें यह सीखना चाहिए कि अगर अपने स्वार्थ के लिए कोई अपनी मातृभूमि, अपने देश और अपनी प्रजा के विनाश पर उतर आए तो उसका साथ छोड़ देना चाहिए भले वह कितना भी सगा हो।

साथ ही यह भी सीखना चाहिए के उचित सलाह देने वाले अपने सचिवों या साथियों को जितना हो सके अपने विश्वास में और अपने साथ रखना चाहिए। और माता पिता का आशीर्वाद हमेशा लेना चाहिए।।
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