रावण की लंका जलाए बजरंगी

अशोक वाटिका में, अशोक वृक्ष के नीचे सशोक बैठी सीता जी को उचित समय देखकर हनुमान जी ने राम कहानी सुनाते हुए मुद्रिका दे दी। सीता जी का दुख देखकर उनसे यह भी कहा कि अगर आप आज्ञा दें तो मैं आपको अभी अपनी पीठ पर बिठाकर रामजी तक ले चल सकता हूं, कोई राक्षस मुझे रोक नहीं पाएगा।

इस पर सीता जी ने कहा कि ‘नहीं पुत्र तुम भले ही मेरे लिए बच्चे की ही तरह हो फिर भी मैं बिना पति की आज्ञा के तुम्हारे साथ नहीं आ सकती।’ धन्य है भारतीय नारियों का यह आदर्श।

सीता जी का पता पाकर हनुमान जी वहीं से वापस राम जी के पास आ सकते थे परंतु उन्होंने एक सच्चे दूत का पूरा कर्म करने का निश्चित किया। सिर्फ सीता जी का पता लगाना ही नहीं बल्कि हनुमान जी का उद्देश्य था कि रावण की सैन्य शक्ति सहित उसके सारे बलाबल का अनुमान करके फिर यहां से चला जाए।

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इसीलिए वे सीता जी से आज्ञा लेकर अशोक वाटिका में फल खाने जाते हैं और जानबूझकर पेड़ों को तोड़ते हैं बगिया उजड़ देते हैं। यहां तक कि रावण के एक पुत्र अक्षय कुमार को मार देते हैं। तब मेघनाथ आता है और जब अपनी किसी भी प्रकार की शक्ति से हनुमान को वश में नहीं कर पाता तो ब्रह्मास्त्र चला देता है।

हनुमान जी ब्रह्मा जी का मान रखते हुए बंदी के रूप में रावण के दरबार में ले जाए जाते हैं। इस प्रसंग से हमें सीखना चाहिए कि स्वामी का कोई भी कार्य हमें अपने बुद्धि विवेक से भी करना चाहिए। कभी-कभी जितना कहा गया है मात्र उतना ही करने से काम पूरा नहीं होता।

सामरिक रूप से अर्थात युद्ध नीति में भी रामायण का यह प्रसंग बहुत महत्वपूर्ण है। आज की भाषा में जिसे हम जासूस कहते हैं उनके लिए यह प्रसंग विशेष शिक्षादाई हो सकता है। अपनी रक्षा करने के लिए शत्रु पर प्रहार करना शास्त्रों ने भी उचित कहा है और रामायण भी इस बात का समर्थन करता है। रावण के दरबार में हनुमान जी ने रावण को यही तर्क दिया और यह कहा कि

जिन्ह मोहि मारा, ते मैं मारे।
तेंहि पर बाँधेउँ तनय तुम्हारे।।

अर्थात जिसने मुझे मारा मैंने उन्हीं को मारा है और इसी बात पर तुम्हारे बेटे ने मुझे बांध लिया।

हनुमान जी रावण को बहुत समझाते हैं कि अपनी शक्तियों का सदुपयोग करो, अधर्म और पाप में शक्तियां नष्ट मत करो।
रावण कहता है अच्छा तो अब एक वानर मुझे जैसे महाज्ञानी को समझाएगा। हनुमान जी कहते हैं -अच्छा ज्ञान कहीं से भी मिले, उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। यह बात हमें भी अपने जीवन में उतारनी चाहिए।  हम किसी भी पद पर हों। किसी विषय के कितने भी बड़े जानकार हों परंतु अगर काम की बात किसी छोटे पद वाले से भी मिल रही है तो उसे धैर्य पूर्वक सुनकर ग्रहण करनी चाहिए। रावण को समझाते हुए हनुमान जी ने जितनी बातें कही हैं। उनमें से कुछ विशेष बातें हम सबको ध्यान रखनी चाहिए– धर्म विरोधी कार्यों से हमेशा अनर्थ हुआ है।

पाप या बुरा कर्म करने वाले को उसका बुरा कर्म ही उसे जड़ से समाप्त कर देता है। किसी भी धर्मवान या बुद्धिमान व्यक्ति को पराई वस्तुओं को छूना भी नहीं चाहिए और स्त्री को तो कदापि नहीं। गलत तरीके से किया गया काम, अहंकार और लालच, इंसान के सर्वनाश का कारण बनता है। इसी सत्य धर्म और ईश्वर पर विश्वास के सहारे हनुमान जी रावण की पूरी लंका जला देते हैं।