भगवान श्रीराम धरती पर मनुष्य रूप में अवतरित हुए साक्षात नारायण का स्वरूप थे. तो उनके साथ जुड़े सभी लोग भी ईश्वरीय शक्ति के महान प्रतीक थे. उन्हें जिन गुरुओं का ज्ञान मिला, वो भी अपार ज्ञानवान, धैर्यवान और हर तरह की विद्या के धनी थे. और उन्होंने श्रीराम को धरती का महान वीर योद्धा बना दिया था.
प्रभु राम के साथ उनके सभी भाई, पवनपुत्र हनुमान, वानर राज सुग्रीव, जामवंत जी सभी ओजस्वी और तेजस्वी थे. और अपार शक्तियों के स्वामी थे. उन्हीं वीरों में से एक थे बाली पुत्र महाबली अंगद. जब भगवान श्रीराम अपनी सेना के साथ लंका पहुंचे तो उन्होंने रावण के पास अपना दूत भेजने का निर्णय लिया. रावण के दरबार में पहुंचकर अंगद ने रावण को समझाया कि तुमने माता सीता का हरण किया है. यदि तुम अपनी भूल सुधारकर श्रीराम की शरण में जाओगे तो वह तुम्हें क्षमा कर देंगे. अंगद की बात सुनकर रावण हंसने लगा. यह देख अंगद ने अपना एक पांव जमीन पर रखा और उसे जमाते हुए और रावण को चुनौती दी, कि अगर लंका में कोई वीर है तो मेरा पैर जमीन से उठाकर दिखाए. एक-एक कर सभा में मौजूद सभी लोगों ने अंगद का पैर उठाने की कोशिश की लेकिन कोई भी उनके पैर को हिला नहीं पाया. ये सब देखकर रावण गुस्से से बौखला गया था.
अंत में जब रावण स्वयं अंगद का पैर उठाने आया तो अंगद ने अपना पैर हटा लिया और रावण से कहा कि मेरे चरण क्यों पकड़ते हो. पकड़ना ही है तो भगवान श्रीराम के चरणों में शरण ले लो, वह दयालु हैं. तुम्हें क्षमा कर देंगे. अन्यथा तुम्हारा अंत निश्चित है. यह कहकर अंगद रावण के दरबार से चले गए. अंगद के इस पराक्रम से भगवान श्रीराम भी बहुत प्रसन्न हुए. और वास्तव में अंगद की चेतावनी के अनुसार धर्म अधर्म की इस लड़ाई में रावण का अंत हो गया.