सनातन धर्म में रावण को बुराई और अधर्म का प्रतीक माना जाता है। हर साल बुराई के प्रतीक के रूप में रावण का पुतला जलाकर दशहरा मनाया जाता है। शास्त्रों में भी रावण को दुराचारी, दुष्ट और अधर्मी की संज्ञा दी गई है।
अलग-अलग रामायण में वर्णित कुछ ऐसी बातें भी हैं जिनकी लोगों के बीच मान्यता है। कहा जाता है कि, बहुत सारी बुराइयों के अलावा रावण में कुछ अच्छाइयां भी थी। वह एक कुशल राजनीतिज्ञ, पराक्रमी, महाज्ञानी, संस्कारी और निष्ठावान था। ‘रामायण’ ने ऐसा ही एक प्रसंग हैं, जिससे रावण की अच्छाई का पता चलता है।
महर्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखी गई ‘इरामावतारम्’ के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त के लिए करने के लिए भगवान श्रीराम रामेश्वरम में यज्ञ कराना चाहते थे। इसके लिए श्रीराम ने जामवंतजी से कहा कि आप किसी ऐसे पुरोहित को यज्ञ के निमंत्रित कीजिए जो शैव और वैष्णव दोनों परंपराओं का ज्ञाता हो। इस पर जामवंतजी ने श्रीराम को बताया कि ऐसा तो एक ही व्यक्ति है और वह है लंका नरेश रावण। यह सुन श्रीराम ने जामवंतजी से कहा कि आप जाकर रावण को यज्ञ का निमंत्रण दीजिए।
श्रीराम की आज्ञा से जब जामवंतजी लंका पहुंचे तो रावण ने उनका बहुत सत्कार किया और लंका आने का कारण पूछा। जामवंतजी ने रावण को बताया कि मेरे यजमान, अयोध्या के राजकुमार और महाराज दशरथ के पुत्र श्रीराम विशेष कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए यज्ञ का आयोजन करना चाहते हैं। उसके लिए आपको पुरोहित के तौर पर आमंत्रण देने आया हूं। इस पर रावण ने जामवंतजी से पूछा कि यह विशेष कार्य कहीं लंका विजय तो नहीं हैं? जामवंतजी ने कहा कि हां यही काम है। इसके बाद रावण ने जामवंतजी का निमंत्रण स्वीकार करते हुए कहा कि आप यज्ञ की तैयारी करे, मैं समय पर आ जाऊंगा। कहा जाता हैं कि रावण भगवान शिव को काफी मानता था, इसलिए वो इस निमंत्रण को ठुकरा न सका।
कहते हैं कि, जब श्रीराम ने रावण से दक्षिणा मांगने के लिए कहा तो रावण ने कहा कि आप वनवासी हैं तो मैं आपसे दक्षिणा नहीं ले सकता। इस पर श्रीराम ने कहा कि आचार्य आप अपनी दक्षिणा बता दें ताकि समय आने पर हम देने के लिए तैयार रहें। तब रावण ने कहा कि जब मेरा अंतिम समय आए तब मेरे यजमान मेरे सामने रहे, यहीं मेरी दक्षिणा होगी। इसके बाद रावण ने श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया और वापस लंका चला गया।