कावेरी नदी का स्वरूप होगा फिर से पहले जैसा, पहले चरण में लगे 1.1 करोड़ पौधे

खबर है कि कर्नाटक में वन विभाग द्वारा अपनी 90 नर्सरियों में ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए जा रहे हैं. कर्नाटक की ही तरह अब और एक राज्य तमिलनाडु में भी यही हो रहा है. जानकारी के अनुसार तमिलनाडु की नर्सरियों में भी पौधे तैयार किए जा रहे हैं. और बताया यह जा रहा है, कि एक नदी के आसपास बदलते और बिगड़ते वातावरण को फिर से पुराने रंग में रंगना है. आपको जानकारी देना चाहेंगे कि तमिलनाडु और कर्नाटक में पौराणिक नदी को बचाने के लिए चल रही मुहिम का यह दूसरा साल है.

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जानकारी के अनुसार बीते साल मानसून में इस नदी के किनारों और इसके कैचमेंट एरिया में लगभग 1.1 करोड़ पौधे लगाए गए थे. हाल ही में जो मॉनसून आया था वह इन पौधों के लिए पहला मॉनसून था.

जानकारी के अनुसार इस प्रोजेक्ट का नाम कावेरी कॉलिंग दिया गया है. और यह अभियान लगभग 12 वर्षों तक चलेगा जिसमें लगभग 242 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे. इस मुहिम की शुरूआत ईशा फाउंडेशन ने की है. इस मुहिम के चलते कुछ समय पहले सदगुरु ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ मीटिंग की थी. आपसे जानकारी साझा करना चाहेंगे कि इस मिशन के तहत कर्नाटक और तमिलनाडु में फैली कावेरी नदी का भौतिक क्षेत्र जो 83,000 वर्ग कि मी है, उसमें 33 प्रतिशत हरियाली की बढ़ोतरी हुई है. इस मिशन के लिए ईशा फाउंडेशन के साथ सरकारी महकमे और कई हजार किसान भी जुड़े हुए हैं.

पौधारोपण की शुरूआत बीते वर्ष सितंबर के महीने से शुरू हुई थी. इस साल पौधारोपण का यह पहला सीज़न है. ख़बर हैं
कि दोनों राज्यों के किसान नवंबर तक अपनी जमीन पर 1.1 करोड़ पौधे रोपने के काम में लगे हुए हैं.

इस प्रकार के कार्य से पर्यावरण को मिलेगा लाभ
1. उम्मीद की जा रही है कि आर्थिक लाभ मिलने के बाद इस तरह के मॉडल से किसान आत्मनिर्भर बन जाएंगे.

2. 2.2 करोड़ पेड़ लगने से इलाके में लगभग 9 ट्रिलियन लीटर पानी जमा किया जा सकेगा. आपको बता दे कि मौजूदा हालत में समकावेरी नदी का प्रवाह लगभग 40 प्रतिशत है – इसका अर्थ यह है कि भूमिगत जल का स्तर काफी हद तक बढ़ जाएगा.

3. उम्मीद की जा रही है कि 20 से 30 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखा जाएगा. जिससे जलवायु परिवर्तन का असर कम होगा. संयुक्त राष्ट्र ने 2016 पेरिस में समझौते किए गए, जिस पर 195 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं. वर्ष 2030 के लिए भारत के राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) का 8-12 प्रतिशत है.

4. पैमाने पर मिट्टी की माइक्रोबियल जैव विविधता सहित पुष्प और पशु जैव विविधता को पुनर्जीवित करेगा.

5. इससे पानी से जुड़ी समस्याओं का हल होगा. अर्थात् जल उपलब्धता को और बेहतर करेगा.

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6. यह किसानों द्वारा रासायनिक खादों के इस्तेमाल को कम करते हुए समुदायों को अधिक स्वास्थ्यवर्धक आहार विकल्प देगा, जब खेतों के आसपास पेड़ होंगे तो पेड़ों के सूखे पत्ते और डालियां प्राकृतिक खाद का बढ़िया स्रोत हैं, इसलिए किसानों को खरीदना नहीं पड़ेगा. यह किसानों को अधिक पशु पालने के लिए भी प्रोत्साहित करेगा, जिससे मिट्टी का उपजाऊपन और बढ़ेगा और डेयरी फार्मिंग से उन्हें आय का एक वैकल्पिक स्रोत भी मिल सकता है.

7. आने वाली पीढ़ी के लिए कई अवसर मौजूद होंगे. जो कम कठिनाई भरे होंगे.

8. साथ ही ग्रामीण लोगों की जीवन शैली में सुधार आएगा.