सम्पन्नता का प्रतीक हैं चावल

संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं के हमारे देश में कुछ अनाज ऐसे भी हैं जो न केवल खाने के काम आते हैं बल्कि वे अनुष्ठानों में अहम भूमिका निभाते हैं। इन्हीं अनाजों में से एक है चावल। यह एक ऐसा अनाज है, जो खाने से लेकर तिलक, पूजा-पाठ और विवाह के साथ ही अंतिम संस्कार में भी काम आता है। बड़ा सवाल यह है कि चावल में आखिर ऐसे क्या गुण हैं जो उसे सबसे पवित्र और धार्मिक कार्यों में उपयोगी बनाते हैं। अन्न में अक्षत यानि चावल को श्रेष्ठ माना जाता है। इसे देवान्न भी कहा गया है, क्योंकि देवताओं का प्रिय अन्न चावल है।

 

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सनातन संस्कृति में पूजा-पाठ का अभिन्न हिस्सा होते हैं चावल। इसे अक्षत भी कहा जाता है। इसके बिना माथे पर कुमकुम से लगाया गया तिलक भी अधूरा है। पूजा के संकल्प से लेकर पुरोहित की दक्षिणा के तिलक तक सभी जगह अक्षत का उपयोग जरूरी है। शादी के समय दूल्हा-दुल्हन पर भी अक्षत उड़ाए जाते हैं। इसके कई कारण हैं। वास्तव में चावल यानी धान्य देवी लक्ष्मी को सबसे ज्यादा प्रिय है। उत्तर और दक्षिण भारत के दोनों भागों में सबसे प्रमुख आहार भी चावल ही है। चावल सम्पन्नता के प्रतीक हैं, इसलिए इन्हें धान्य कहा गया है। जो धन पैदा करे, वो धान्य। धान्य की हर बात निराली है, इसके सारे गुण ऐसे हैं जो इसे पूजा में रखने और उपयोग के योग्य बनाते हैं।

अक्षत का मतलब भी है, जिसका क्षय नहीं हो यानी जो कभी खराब न हो, ये दीर्घायु हैं। चावल जितना ज्यादा पुराना होता है, उतना ही अधिक स्वादिष्ट होता है। इसलिए पुराने चावल की कीमत ज्यादा होती है। लंबे समय तक बने रहने के कारण ही इन्हें आयु का प्रतीक भी माना जाता है। जब किसी के माथे पर तिलक लगाया जाता है तो वह सम्मान और यश का प्रतीक होता है, उस पर चावल के दो दाने लगाने का अर्थ है कि उसकी आयु के साथ उसका यश और सम्मान भी लंबे समय तक जीवित रहे। पूजा में भी इसे इसी कारण उपयोग किया जाता है। अक्षत का रंग सफेद होता है, सफेद सत्य का प्रतीक और शांति का कारक रंग है। जब ईश्वर की पूजा की जाती है तो उसमें सत्य का भाव होता है। पूजा परमात्मा को समर्पित होने से हमारे जीवन में शांति आती है और इसी भाव के लिए अक्षत पूजा में चढ़ाए जाते हैं। चावल की तासीर ठंडी होती है। ये शीतलता प्रदान करते हैं। हवन, यज्ञ आदि से उत्पन्न गर्मी को शांत करने के लिए भी अक्षत का अर्पण होता है। इस तरह धन, आयु, शांति, सत्य और शीतलता आदि पांच कारणों से अक्षत पूजा में रखे जाते हैं।

पूजा में अक्षत चढ़ाने का मतलब यह भी है कि हमारा पूजन अक्षत की तरह पूर्ण हो। अन्न में श्रेष्ठ होने के कारण भगवान को चढ़ाते समय यह भाव रहता है कि जो कुछ भी अन्न हमें प्राप्त होता है वह भगवान की कृपा से ही मिलता है। चावल का अर्पण हमारे प्रत्येक कार्य में पूर्णता और शांति प्रदान करता है। इस कारण पूजन में अक्षत का काफी महत्व है। पूजा ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद पितरों को जो पिंड तर्पण किए जाते हैं, वे चावल के आटे के बनाए जाते हैं। चावल से पितरों को न केवल तृप्ति मिलती है, बल्कि उनको ये लंबे समय तक संतुष्टि प्रदान करते हैं। चावल के कारण मृतकों को सद्गति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से चावल यानी अक्षत को पवित्र अनाज माना गया है। अगर पूजा-पाठ में किसी सामग्री की कमी रह जाए तो उस सामग्री का स्मरण करते हुए चावल चढ़ाए जा सकते हैं।

पूजा में किसी न किसी सामग्री को किसी न किसी भगवान को चढ़ाना निषेध भी बताया गया है, जैसे तुलसी को कुमकुम नहीं चढ़ता, शिव को हल्दी नहीं चढ़ती, गणेश तो तुलसी नहीं चढ़ती, दुर्गा को दूर्वा नहीं चढ़ती लेकिन अक्षत हर देवी-देवता स्वीकार करते हैं। चावल साफ होने चाहिए। शिवलिंग पर अक्षत चढ़ाने से शिवजी अतिप्रसन्न होते हैं और अखंडित चावल की तरह अखंडित धन, मान-सम्मान प्रदान करते हैं, लेकिन खंडित चावल शिव स्वीकार नहीं करते।

भगवान को चावल चढ़ाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि चावल टूटे हुए न हों। अक्षत पूर्णता का प्रतीक है अत: सभी चावल अखंडित होने चाहिए। घर में अन्नपूर्णा माता की प्रतिमा को चावल की ढेरी पर स्थापित करना चाहिए। इससे जीवनभर धन-धान्य की कमी नहीं होती है। चावल की ऐसी ही अनेक खूबियां हैं, जिनके कारण वह हमारे साथ ही ईश्वर को भी पसंद हैं। इसीलिए चावल भोजन और भजन दोनों में ही उपयोगी है।