वनवास के बाद भगवान श्रीराम ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अपनी लीलाओं को विस्तार दिया। दुष्टों का अंत करने के साथ ही समाज को अपने कार्यों के माध्यम से कई संदेश दिए। भगवान श्रीराम जब लक्ष्मणजी के साथ माता सीता की खोज में लगे हुए थे तो वे पंपा सरोवर के पास बने माता शबरी के आश्रम पहुंचे थे। इसके बाद तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए श्रीराम और लक्ष्मणजी माता सीता की खोज में आगे बढ़े। इसके बाद भगवान की मुलाकात रावण से युद्ध के दौरान घायल जटायु से हुई और जटायु के माध्यम से उन्हें पहली बार पता चला कि माता सीता को रावण ले गया है। यहां से रामजी आगे बढ़े तो उनकी राक्षस कबंध से मुलाकात हुई। कबंध का कल्याण करने के बाद श्रीराम और लक्ष्मणजी पंपा नदी होते हुए ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे।
उल्लेखनीय है कि पंपा नदी केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे ‘पम्बा’ नाम से भी जाना जाता है। ‘पंपा’ तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। जैसा कि माता शबरी ने भगवान श्रीराम को बेर खिलाए थे, यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। ‘रामायण’ में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के रूप में किया गया है। मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए भगवान श्रीराम और लक्ष्मणजी ऋष्यमूक पर्वत की ओर आगे बढ़े थे।
ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में हुए जिक्र के अनुसार वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट था। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमानजी से भेंट हुई थी। बाद में हनुमानजी ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली ने अपने भाई सुग्रीव को किष्किंधा से बाहर कर दिया तो वह हनुमानजी, जामवंतजी और अन्य कई महाबली साथियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर ही रहने लगे थे।
इसके बाद रामजी ने सुग्रीव के पास सीताजी के उन आभूषणों को देखा जो माता सीता ने हरण के दौरान रावण के विमान से जंगल में गिराए थे। सुग्रीव से मित्रता के बाद माता सीता की खोज की रणनीति बनाई गई। इसी दौरान भगवान श्रीराम ने बाली का अंत कर उसे मुक्ति दी।
आज भी ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पंपा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है। इस पहाड़ी को ‘मतंग पर्वत’ माना जाता है, क्योंकि यहां मतंग ऋषि का आश्रम था।
हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद भगवान श्रीराम ने हनुमानजी और सुग्रीव के साथ मिलकर लंका पर चढ़ाई के लिए सेना बनाई। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके श्रीराम और उनकी सेना समुद्र की ओर बढ़ी। श्रीराम ने पहले अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया था।
इस प्रकार भगवान श्रीराम और लक्ष्मणजी माता सीता की खोज करते हुए हनुमान जी और सुग्रीव से मिले और रावण से युद्ध की तैयारी की। आज भी ऋष्यमूक पर्वत और मतंग ऋषि का आश्रम भगवान श्रीराम के चरणों से पावन है और श्रद्धालु वहां जाकर भगवान श्रीराम के प्रति आस्था व्यक्त करते हैं।