परमपिता ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शिव का जन्म एक रहस्य है. शिवजी ने ब्रह्माजी के मानसपुत्र दक्ष की पुत्री सती से विवाह किया, और भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के पुत्र भृगु की पुत्री लक्ष्मी से विवाह किया था.
भगवान शिव की महिमा से पूरा संसार भली भांति परिचित है. उनका तेज़, उनका क्रोध, विपदा के समय सदैव सामने आकर संसार की रक्षा करना, ये सब भोलेनाथ की महानता है. तो वहीँ परमपिता ब्रह्माजी ने सृष्टि के निर्माण हेतु अपने मानस पुत्रों को उत्पन्न किया, और उन्हें सृष्टि का कार्य आगे बढ़ाने का दायित्व सौंपा. और भगवान विष्णु ने अलग अलग युगों में पाप का नाश करने हेतु बार बार अवतार लेकर मानव जीवन का दिशा निर्माण किया.
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है, जबकि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु स्वयंभू हैं. ईश्वर समयसीमा और संसार से परे हैं. उनकी महिमा अनन्त है, जीवन और मृत्यु के बीच मनुष्य धरती पर जन्म लेता है, और अपनी जीवन यात्रा का निर्वाह करके चला जाता है, पर भगवान के सामने मनुष्यों और जीव जंतुओं की ऐसी कई सृष्टियों का निर्माण हो चुका है. इस संसार से पहले कई संसार बने हैं, और मिटे हैं. उन सबके साक्षी है केवल ईश्वर हैं.
ब्रह्मा, विष्णु, महेश की कृपा से ही देवलोक, मृत्युलोक और पाताललोक ये तीनों लोक संचालित होते हैं. देव, दानव, मनुष्य, असुर, जीव जंतु पेड़ पौधे इन सभी को ब्रह्माजी का वंशज माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये सभी महर्षि कश्यप की संतानें हैं. यानि सभी के मूल में यही त्रिदेव हैं. यही निर्माण हैं, और यही अंत हैं, यही ब्रह्माण्ड हैं, और यही अनंत हैं. भगवान के इन तीनों स्वरूपों ने समय समय न केवल मनुष्यों की बल्कि देवताओं और सृष्टि की भी रक्षा की है. क्योंकि यही उनका दायित्व है, जिसका वो निर्वाह कर रहे हैं.