सनातन धर्म में नागों को बहुत पूज्यनीय माना जाता है. क्योंकि यहाँ हर जगह स्वयं नारायण के साथ भी नाग का वास होता है. जहाँ भगवान् विष्णु के साथ नागों के राजा शेषनाग सदैव रहते हैं, तो भगवान भोलेनाथ के साथ तो जैसे नागों का बसेरा है. शास्त्रों में नागों की महिमा का बखान वर्णित है. इस देश में और दुनिया में कई जगह नागों के मंदिर हैं, उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर प्रांगण में ही नागचंद्रेश्वर मंदिर है, जो साल में सिर्फ एक दिन यानि नाग पंचमी को ही खुलता है, और उस मंदिर में विशेष पूजा की जाती है.
यह स्तोत्र पढ़िए और समझिए
अनंत, वासुकी, शेषं, पद्मनाभं च कम्वलं
शंखपालं, धृतराष्ट्रकंच, तक्षकं, कालियं तथा
एतानि नवनामानि नागानाम् च महात्मना
सायंकाले पठेन्नित्यम् प्रात:काले विशेषत:
तस्य विषभयं नास्ति, सर्वत्र विजयी भवेत् ।
अनन्त वासुकी शेष पद्मनाभ और कम्बल नाग तथा शंखपाल, धृतराष्ट्र तक्षक और कालिया इन नौ नागों का महत्व इतना है कि विशेषत सुबह और शाम को इन नामों का पाठ करने से विष भय नहीं होता और पाठ करने वाला सर्वत्र विजय प्राप्त करता है.
इन नव नागों में पहले चार दैवीय नाग हैं अर्थात यह विष्णु और शिव की सेवा में नियुक्त हैं. अनंत तथा शेष नाग खुद विष्णु जी का अवतार हैं और उनकी सेवा में है. कम्बल नाग गणेश जी का कमर बन्द है वहीं वासुकी नाग शिवजी के गले का कंठहार हैं. इनमें से कालिया नाग को खुद श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनुग्रहित कर अपनी सेवा में लिया था इसलिए श्री कृष्ण कालिया के भी स्वामी थे. और शंखपाल महालक्ष्मी और कुबेर के खजाने की रक्षा करता है.
इस तरह नाग न सिर्फ हमारी महान सनातन संस्कृति में पूज्यनीय हैं, बल्कि देवों का स्वरुप हैं. इसलिए आये दिन कभी न कभी हमें नागों के चमत्कार सुनने और देखने के लिए मिलते हैं.