भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान स्वयं कष्ट उठाकर समाज को कई बड़े संदेश दिए हैं। पशु-पक्षी से मित्रता, वनस्पतियों की रक्षा, दुष्टों का अंत जैसे समाजहित के कई काम किए। वन गमन के दौरान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मणजी दंडकारण्य क्षेत्र में आने वाले नासिक क्षेत्र में पहुंचे थे। यहां पंचवटी में ठहरे हुए थे। इस क्षेत्र में आज भी लक्ष्मण रेखा है। इसी दौरान शूर्पणखा, मारीच, खर और दूषण के वध के बाद लंका के राजा रावण ने सीता का हरण कर लिया और जटायु की भी जान ले ली, जिसकी याद नासिक से 56 किमी दूर इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर आज भी मौजूद है।
रावण द्वारा माता सीता का हरण करने पर गिद्धराज जटायु ने उससे युद्ध किया था, लेकिन रावण ने वृद्ध जटायु को घायल कर दिया था। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो ताकेड गांव में आज भी मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में भगवान राम को जानकारी दी थी। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था।
आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में पर्णशाला स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को ‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ भी कहते हैं। प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। कुछ लोग मानते हैं कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने अपहरण करने के बाद सीताजी को विमान में बिठाया था और विमान ने उड़ान भरी थी। इसे ही से वास्तविक हरण का स्थल माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर भी है।
भद्राचलम की एक विशेषता यह भी है कि यह वनवासी बहुल क्षेत्र है और रामजी वनवासियों के पूज्य हैं। यहीं पर पर्णशाला के पास कुछ ऐसे शिलाखंड भी हैं जिनके बारे में यह विश्वास किया जाता है कि सीताजी ने वनवास के दौरान यहां वस्त्र सुखाए थे। इस तरह नासिक, पंचवटी और आंध्रप्रदेश की पर्णशाला भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मणजी की निशानियों से भरी पड़ी है।