आप सोच रहे होंगे, कि यहाँ किस तरह के लोगों की बात हो रही है ? इस सवाल का जवाब बस इतना है, कि जिस युग में हम जी रहे हैं उस युग में निस्वार्थ भाव वाले लोग मिलना एक तरह से मुश्किल है और अगर मिल जाए तो आप क़िस्मत वाले हैं. निस्वार्थ भाव से किया गया कार्य आपको लोगों से अलग करता है और ऐसे व्यक्ति को समाज से बहुत सम्मान मिलता है.
जब भी कभी मौका लगे ऐसे व्यक्ति की मदद अवश्य करें जो परेशानी में हो लेकिन निस्वार्थ भाव से मदद करें. ऐसा करने से आपको एक अलग एहसास होगा, मन खुश होगा. इस तरह का कार्य वही करते हैं जो कभी किसी का बुरा नहीं करते और जब भी कभी दुखी व्यक्ति को देखते हैं तो उन्हें भी दुख होता है. वैसे भी हमारी सभ्यता और संस्कृति हमें “सर्वे भवंतु सुखिन: सिखाती है. ”
सनातन धर्म के अनुसार कई नीतियां बताई गईं हैं अगर व्यक्ति उनको अपना ले तो जीवन सुखी और सफल हो सकता है. इन नीतियों को अपनाने से कई परेशानियों को दूर किया जा सकता है. सभी धर्म के ग्रंथों में कर्म को सबसे अधिक महत्व दिया गया है और यह बताया गया है कि माता, पिता व मित्रों को हमेशा सम्मान देना चाहिए. भगवान श्रीकृष्ण ने भी महाभारत में यही संदेश दिया है. यहां जानिए ऐसी ही कुछ और नीतियां…
1. जो लोग बिना सोचे-समझे कुछ भी काम कर देते हैं, वे परेशानियों का सामना करते हैं. जो लोग अच्छी तरह से सोच विचार कर कार्य करते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं.
2. कोयल और कौवा, दोनों ही काले होते हैं. दोनों में क्या अंतर है, ये वसंत ऋतु के आने पर मालूम हो जाता है. कोयल की आवाज मधुर होती है और कौवे की आवाज कर्कश होती है. इसी तरह किसी व्यक्ति के अच्छे गुण या बुराइयां समय आने पर सभी को मालूम हो ही जाती हैं.
3. जो व्यक्ति दान नहीं करता, तप नहीं करता, जो साहसी नहीं है, जो विद्यावान नहीं है, जो किसी की मदद नहीं करता है, जो व्यक्ति सिर्फ अपने बारे में सोचता है, ऐसे लोग समाज की तो छोडिए खुद का भी भला नहीं कर पाते.
4. माता -पिता और मित्र, ये तीनों हमेशा ही हमारे हित के बारे में सोचते हैं. ये तीनों हमसे किसी तरह की अपेक्षा नहीं करते हैं. स्वार्थ के बिना हमारी मदद करते हैं. इनके अलावा अगर कोई व्यक्ति हमारे लिए काम कर रहा है तो वह हमसे कुछ न कुछ अपेक्षा जरूर रखता है.
अर्थात, हर व्यक्ति के जीवन का एक ही लक्ष्य होना चाहिए कि आपके द्वारा किए गए कार्य से सामने वाले व्यक्ति को कभी दुख न पहुंचे.