आश्रम में सीता जी को न पाकर राम लक्ष्मण रोते बिलखते सीता जी को खोजते जटायु के पास पहुंचते हैं। रावण द्वारा घायल किए गए जटायु, राम को बताते हैं कि रावण सीता को दक्षिण दिशा में ले गया है पर कहां गया यह पता नहीं, तो राम जी कहते हैं- तात आप निश्चय रखिये। जिस ओर भी वो पापी गया है उसे मेरे हाथों से कोई नहीं बचा सकेगा।
धरती, आकाश, पाताल वो जहां कहीं भी गया होगा मैं उसका पता लगाकर वहीं उसकी चिता बना दूंगा। अब उसे मेरे बाणों से स्वयं ब्रह्मा भी नहीं बचा सकेंगे प्राण त्यागते हुए जटायु ने राम से आज्ञा मांगी तो रामजी भाव विभोर होते हुए बोले– हे महात्मन आपने मेरे लिए अपने प्राणों का बलिदान किया है मैं तीनो लोक में आपका ऋणी रहूंगा। आपने पुत्र वधू की भांति सीता की रक्षा की है मैं एक पुत्र की भांति रावण से आपके वध का भी बदला लूंगा। रामजी ने जटायु को पिता समान मानकर उनका अंतिम संस्कार किया।
ये है राम का उदार व्यक्तित्व जिन्होंने चांडाल पक्षी की योनि में मिले जटायु को भी पिता तुल्य पूरा सम्मान दिया।
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अकेली असहाय सीता ने त्रिलोक विजयी महाबली रावण की किसी बात का प्रभाव स्वयं पर नहीं पड़ने दिया और अपने सतीत्व पर अडिग रही बिना डरे। जिसके मन में राम नाम का सच्चा आधार हो वह संसार में किसी से नहीं डरता।
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Jai Shriram 🙏 #goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Samstag, 30. Mai 2020
रावण ने हर तरह से समझाया लाखों प्रलोभन दिए। भयंकर राक्षसियों ने तरह तरह से डराया धमकाया पर सीता जी के मन में राम का और अपने सतीत्व का विश्वास ज्यों का त्यों बना रहा। यह है एक भारतीय नारी के सतीत्व का प्रभाव।
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राक्षस राज रावण की पत्नी मंदोदरी का चरित्र भी अनुकरणीय है। जिस सीता के लिए उनका पति मरा जा रहा है उसी सीता के लिए नारी सुलभ स्वभाव के कारण वस्त्र आभूषण भिजवा रही हैं। यह एक आदर्श नारी का चरित्र है जो हर नारी को अपनाना चाहिए।।
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कबंध राक्षस की कथा एक बहुत बड़ी सीख देती है कि ‘हम कितने भी बड़े रूपवान, गुणवान, बलवान हों परंतु हमें दूसरों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।’ कबंध एक बहुत ही सुंदर बलवान धनु नाम का गंधर्व था जो संतों का अपमान करता था
मजाक उड़ाता था, भयंकर रूप बनाकर उन्हें डराया करता था और उन्हीं में से एक संत के श्राप से भयंकर राक्षस हो गया। राम ने उसका भी उद्धार किया।
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शबरी माता का प्रसंग भक्त और भगवान के मिलन का सबसे अद्भुत प्रसंग है। राम शबरी के। जूठे बेरों को पूरे सम्मान के साथ खाते हैं और कहते हैं– वर्षों बाद ऐसा लगा जैसे माता कौशल्या स्वयं अपने हाथ से खिला रही हों, ऐसे मीठे फल तो भगवान को बैकुंठ लोक में भी नहीं मिल सकते। एक भीलनी के जूठे बेर रामजी ने अपनी भूख मिटाने के लिए नहीं खाए बल्कि ऊंच-नीच और जाति पांति के भेद मिटाने के लिए खाए।
शबरी ने ज्ञान और भक्ति सिखाने को कहा तो राम जी बोले- माता भगवान के निकट जाति पाति, ज्ञान धर्म , कुल गुण और चतुराई का कोई मोल नहीं होता। वे तो केवल भक्ति के नाते को ही सच्चा नाता मानते हैं। इसके बाद भगवान श्री राम शबरी को भक्ति के नौ प्रकारों (नवधा भक्ति) का उपदेश करके किष्किंधा की ओर चल पड़ते हैं।