हमेशा आज़ाद ही रहे अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद (पुण्यतिथि पर विशेष)

आज इस बात को पूरे 90 साल हो चुके हैं. 27 फरवरी 1931 यही थी वो मनहूस तारीख जिस दिन चंद्रशेखर आजाद ने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के अल्‍फ्रेड पार्क में अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार होने से बचने के लिए खुद को गोली मार कर स्‍वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों को देश के नामा न्योछावर कर दिया था.

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आज हम जिस खुली हवा में साँसें ले रहे हैं, उसके पीछे कई महान लोगों के अपना जीवन कुर्बान कर दिया. बड़े बड़े शहीद जिन्होंने छोटी छोटी उम्र में वो इतिहास लिखा दिया, की उनकी बातें जानकर आज हमें फख्र होता है.

दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे’ ये कहना था आजादी के वीर नायक चन्द्र शेखर आज़ाद का. उनकी वीरता की गाथा देशवासियों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है. दुनिया उन्‍हें ‘आजाद’ के नाम से जानती है. पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी. मध्य प्रदेश में जन्‍मे चंद्रशेखर को उनकी मां संस्‍कृत का बड़ा विद्वान बनाना चाहती थीं. इसलिए अपने पति को मनाया कि लड़के को पढ़ने काशी विद्यापीठ भेजें. बनारस पहुंचे चंद्रशेखर की दिलचस्‍पी संस्‍कृत में कम, देश की आज़ादी के चल रहे असहयोग आंदोलन में ज्‍यादा थी. महज 15 साल की उम्र में चंद्रशेखर आज़ाद को गिरफ्तार किया गया. जब मजिस्‍ट्रेट के सामने पेश किया गया तो वहां उन्‍होंने अपना नाम ‘आजाद’ बताया, पिता का नाम ‘स्‍वतंत्रता’ और पता ‘जेल’. उस दिन के बाद से उन्हें ‘आज़ाद’ कहा जाने लगा.

आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भावरा गांव में पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर हुआ था. भारत के वीर सपूत आजाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भवरा में प्राप्त की और उच्च अध्ययन के लिए वाराणसी के उत्तर प्रदेश के एक संस्कृत पाठशाला में प्रवेश लिया. वे बचपन से ही गांधी जी से प्रेरित थे. इस कारण 14 साल की छोटी उम्र में ही वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े. उसके बाद उनके साथ कई लोग जुड़ते गए और ये कारवां बनता चला गया. 27 फ़रवरी 1931 के दिन इलाहाबाद (आज के प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क (जिसका नाम बदलकर आजाद पार्क कर दिया गया है) में उनका सामना अंग्रेजों से हो गया, इस दौरान दोनों तरफ से गोलियां चलीं. अंग्रेजों के ऊपर अपनी रिवाल्वर से पांच गोलियां चलाने के बाद जब आज़ाद को ये एहसास हुआ, कि वो यहां से बचकर नहीं निकल पाएंगे तब उन्होंने आखिरी गोली खुद को मार ली. वे नहीं चाहते थे कि अंग्रेजों की गोली से मरें, इसलिए हमेशा आजाद रहने वाले चंद्रशेखर सदा के लिए आजाद ही रहे, और देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण त्याग त्याग दिए. भारत को आजादी दिलाने के लिए हमारे देश के इस वीर महापुरुष को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन.