दुनियां के एक मात्र वकील, जो अदालत में भी पिछले 41 साल ‌से दे रहे हैं संस्कृत भाषा में दलील

संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। इसे देवों की भाषा भी कहा जाता है। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है। ‘संस्कृत’ का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा। सनातन धर्म से जुड़े लगभग सभी ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं। आज भी हिंदू धर्म में होने वाले यज्ञ और पूजा में संस्कृत भाषा में श्लोक पढ़े जाते हैं। संस्कृत भाषा के व्याकरण के कारण इसे दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा माना जाता है जो पूरी तरह से सटीक है। एक रिपोर्ट के अनुसार संस्कृत भाषा कम्प्यूटर के उपयोग के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। प्राचीन भारत में संस्कृत भाषा विद्वानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य भाषा थी। हालांकि समय के साथ-साथ संस्कृत भाषा का स्थान दूसरी भाषाओं ने ले लिया। आज भारत में बहुत कम लोग हैं जो संस्कृत भाषा को जानते हैं।ImageSource

बनारस में रहने वाले वकील श्याम उपाध्याय आज भी संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं। वह दुनिया के एकलौते ऐसे वकील है जो अपना पूरा मुकदमा संस्कृत में लड़ते हैं। यहां तक की न्यायालय में वकालतनामा, शपथ पत्र, प्रार्थना पत्र आदि भी संस्कृत भाषा में ही जमा करते हैं। श्याम उपाध्याय जब न्यायालय में संस्कृत भाषा में दलील देते हैं तो उनके विरोधी भी अवाक रह जाते हैं। श्याम उपाध्याय को संस्कृत भाषा से बहुत प्रेम है और वह संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए ही न्यायालय में मुकदमा संस्कृत में लड़ते हैं। संस्कृत भाषा के प्रति श्याम उपाध्याय के समर्पण को देखते हुए तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने उन्हें संस्कृत मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया था।

श्याम उपाध्याय को संस्कृत भाषा के प्रति प्रेम उनके पिता से विरासत में मिला है। उनके पिता स्वर्गीय संगठा प्रसाद उपाध्याय संस्कृत के अच्छे जानकार थे। चार साल की उम्र में श्याम उपाध्याय अपने पिता के साथ कहीं जा रहे थे। इस दौरान उनके पिता को रास्ते में कुछ लोग मिले और भोजपुरी में वार्तालाप करने लगे। इस दौरान बातों ही बातों में उनके पिता ने कहा कि जैसे हम भोजपुरी में वार्तालाप कर रहे हैं, वैसे सभी संस्कृत भाषा में वार्तालाप करें तो अच्छा होगा। उस दिन श्याम उपाध्याय ने मन ही मन में संस्कृत में ही बात करने की ठानी। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही संस्कृत भाषा में दक्षता हासिल की और फिर संम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से बौद्ध दर्शन में आचार्य किया। इसके बाद अपने गुरु के कहने पर अध्यापन का काम किया।

हालांकि श्याम उपाध्याय वकील बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हरिश्चचन्द्र महाविद्यालय से एलएलबी की परीक्षा उत्तीर्ण की। वकील बनने के बाद उन्होंने 1978 से संस्कृत भाषा में ही मुकदमा लड़ना शुरू किया था जो आज भी जारी है।