रोने के भी हैं कई फायदे.. जापान में चल रही है रोने की क्लास

ये ज़िदगी है जहां कभी सुख है तो कभी दुख, कभी लोग हँसते-खेलते दिखते हैं तो कभी रोते.. हम सब ज़िदगी में हर उतार चढ़ाव से गुज़रते हैं. अर्थात् ज़िदगी है तो सब चीज़ों का अनुभव ज़रूर होगा. आज के इस आर्टिकल में हम आपको जानकारी देंगे कि रोने से कैसे फायदा पहुंचता है और एक जापानी शख्स के बारे में बताना चाहेंगे कि आखिर वह क्यों लोगों को रुलाता है. रुलाने के बावजूद इस शख्स को वहां के लोग बहुत ज्यादा पसंद क्यों करते हैं?

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1. रोने से स्ट्रेस कम होता है: रोने से शरीर में मौजूद केमिकल्स की मात्रा कम हो जाती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि रोते समय जब आंसू निकलते हैं तब कैमिकल्स या कहें टॉक्सिन्स आखों से बाहर आ जाते हैं जिससे आपका स्ट्रेस कम हो जाता है. आपने यह तो कहते हुए कई बार सुना होगा कि रोने से मन हल्का हो जाता है अर्थात् रोने से मन, दिमाग व शरीर शांत हो जाता है.

2. आंखों की रोशनी बनी रहती है: डॉक्टरों का कहना है कि आंखों में मेमब्रेन अगर सूख जाए तो दिखना कम हो जाता है. ऐसे में आंसू मेमब्रेन को सूखने नहीं देता. और इससे रोशनी लंबे समय तक बनी रहती है.

3. लंबे समय तक रोना अच्छा है: शोधकर्ताओं का कहना है कि लंबे समय तक जो व्यक्ति रोता है उसकी आखों से ऑक्सिटोसिन और इन्डॉर्फिन जैसे केमिकल्स रिलीज होते हैं. ये केमिकल्स रिलीज होने के बाद उस व्यक्ति को फील गुड करवाता है. और इससे शरीर में हो रही पीड़ा कम हो जाती हैं. अर्थात्, दर्द दूर होने के बाद मूड अच्छा हो जाता है और वह व्यक्ति नए विचारों पर काम करना शुरू कर देता है.

अब बात जापानी उस व्यक्ति की जो लोगों को रुलाकर तरोताजा करता है

जानकारी के अनुसार जापान में एक टियर टीचर (Tear Teacher) के नाम से मशहूर हिदेफुमी योशिदा ने 50 हजार से ज्यादा लोगों को रुला कर तरोताजा किया है. पिछले 8 साल से इसी तरह यह शख्स लोगों का मन शांत कर रहा है.

ऐसे लोगों को रुलाते हैं

जिस तरह हँसाना मुश्किल होता है उसी तरह किसी भी शख्स को रुलाना चुनौती भरा होता है. इसी बात का समर्थन योशिदा भी करते हैं. उनका कहना है कि “लोगों को रुलाना आसान नहीं है. मैं कई तरह की फिल्में, बच्चों की किताबें, चिटि्ठयां और तस्वीरों से लोगों को रुलाकर उन्हें तरोताजा महसूस कराता हूं. मेरी क्लास में कुछ ऐसे लोग भी आते हैं जो एक प्राकृतिक दृश्य को देखकर रो पड़ते हैं. रोने की कला को जापानी भाषा में ‘रूई कात्सु’ कहते हैं.

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आखिर लोगों को रुलाने की जरूरत क्यों पड़ी?

टियर टीचर यानी योशिदा से पूछा गया कि आखिर क्यों इस तरह की क्लास की शुरूआत करनी पड़ी? तब उनका कहना था कि जापान में बचपन से ही लोगों को आंसुओं को कंट्रोल करना सिखाया जाता है. ऐसे में दर्द और तनाव मन के अंदर रहता है और इस वजह से इंसान अंदर ही अंदर घुटने लगता है और चिड़चिडा सा हो जाता है. अर्थात् सकारात्मक सोच खत्म हो जाती है और वह व्यक्ति बीमार हो जाता है.

इस वजह से ‘रूई कात्सु’ नामक क्लास की शुरुआत हुई. इससे लोग अपना तनाव दूर कर रहे हैं. अर्थात् लोग इस क्लास को खूब पसंद कर रहे हैं.