महर्षि विश्वामित्र का यज्ञ पूर्ण करा के उन्हीं के साथ गंगा दर्शन और अहिल्या उद्धार करते हुए राम लक्ष्मण मिथिला पहुंच गए।
पुष्प वाटिका में त्रिलोक सुंदरी सीता जी को देखने और उनके अनुकूल होने पर भी किसी प्रकार की मर्यादा का उल्लंघन या असंयमित व्यवहार नहीं किया। उन्मत्त युवा अवस्था में होते हुए, हर तरह से समर्थ होते हुए भी रामजी ने कामनाओं, भावनाओं और मन पर भी हमेशा पूरी तरह का संयम रखा।
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वह शिव धनुष जो उस समय के बड़े-बड़े योद्धाओं द्वारा हिलाया भी नहीं जा सका उसे बड़ी ही सरलता और सहजता से उठाकर तोड़ दिया फिर भी मन में जरा सा भी अभिमान नहीं आया।
Jai Shriram 🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Samstag, 23. Mai 2020
भगवान परशुराम के क्रोधित होकर बहुत कुछ अनाप-शनाप कहने पर भी, सीमा से कहीं अधिक उकसाने पर भी राम जी के मुख से एक भी कटुशब्द, अपशब्द या क्रोध भरा शब्द नहीं निकला यह उनके धैर्य का प्रमाण है।
राम ने कोई कोरा उपदेश नहीं दिया है बल्कि अपने आचरण से, व्यवहार से और अपने रहन-सहन से एक आदर्श मानवता स्थापित की है। राम का हर व्यवहार हमारे अपने जीवन में उतारने जैसा है।