जब शिवजी ने स्वयं भरतमुनि को दी तांडव सीखने ‌की सलाह

दुनियां भर में नृत्य की जितनी भी शैली हैं उनमें भारतीय शास्त्रीय नृत्य बहुत ही प्राचीन विधा है, जिसका वर्णन चारों वेदों के साथ रामायण और महाभारत काल में भी रहा है. माना जाता है कि, ब्रह्माजी के कहने पर इन्हीं चारों वेदों में से कुछ तत्व लेकर भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना की थी. नाट्य शास्त्र को पंचम वेद भी कहा जाता है. ब्रह्माजी ने ही भरत मुनि को नृत्य और नाटक की कला सिखाई. भरत मुनि एक महान नाट्यविद और संगीतज्ञ थे. उन्होंने नाट्य शास्त्र के माध्यम से इस शिक्षा को अमर कर दिया. ImageSource

नाट्यशास्त्र पहला प्राचीन ग्रन्थ है, जिसमें नृत्य के दिव्य मूल उल्लेख है. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के आसपास भरत मुनि द्वारा लिखित इस ग्रन्थ को कला के माध्यम से धार्मिक ज्ञान का साधन भी माना जाता है. नाट्यशास्त्र में नाटक, संगीत, काव्य सहित भारतीय शास्त्रीय नृत्य की उत्पत्ति का भी उल्लेख किया गया है.ImageSource

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भरत मुनि से, आत्रेय ऋषि ने नाट्य शास्त्र की मूल व्याख्या करने के लिए कहा, इस पर भरत मुनि ने बताया कि, त्रेता युग में लोग नृत्य और आनंद के आदी हो गए थे. उसके बाद इन्द्रदेव ने ब्रह्माजी के पास जाकर कहा कि, आप किसी ऐसे ग्रन्थ की रचना कीजिये जिसमें कर्म, धन, यश और आनंद जैसी चीजें हों, जो लोगों को जीवन का तरीका सिखाकर कला के बारे में बताये, और वह ग्रन्थ ऐसा हो जो हर वर्ग के लोगों को समझ में आये. उसके बाद ब्रह्माजी ने ऋग्वेद से पाठ्य लिया, सामवेद से संगीत लिया, यजुर्वेद से अभिनय लिया, और अथर्ववेद से रस लिए, और इनके सम्मिश्रण से नाट्य शास्त्र बनाकर तैयार किया.ImageSource

ब्रह्माजी ने नाट्य शास्त्र का ज्ञान भरत मुनि और उनके 100 पुत्रों को भी सिखाया. उसके बाद ब्रह्माजी ने भरतमुनि से कहा कि, आप समुद्र मंथन के लिए एक अच्छा सा नृत्य नाटक तैयार करें, तब भरत मुनि ने कहा, उसके लिए सौंदर्य और कोमलता की आवश्यकता है. उसके बाद ब्रह्माजी ने अप्सराओं की रचना की. जो उस नृत्य नाटिका का हिस्सा बनीं. समुद्र मंथन में जब देवों की जीत हुई, तब अप्सराओं द्वारा उस नृत्य नाटिका का प्रदर्शन किया गया. इसपर राक्षसों को क्रोध आ गया, और उन्होंने कहा कि, देवता जानबूझकर हमारा अपमान कर रहे हैं, और उन्होंने उसमें व्यवधान डालना शुरू कर दिया. तब ब्रह्माजी ने बीच में आकर राक्षसों को समझाया कि, ये किसी के अपमान के लिए नहीं, बल्कि नृत्य नाटक के माध्यम से यहाँ उपस्थित सभी लोगों को शिष्टाचार और कला सिखाने के लिए हो रहा है, राक्षस, ब्रह्माजी का कहना भी नहीं माने, उसके बाद इंद्र देव ने जर्जरास्त्र का प्रयोग किया, तो राक्षस भयभीत होकर शांतिपूर्वक वहां बैठ गए, और नृत्य नाटक के उस कार्यक्रम को अंत तक देखा, तब उन्हें समझ में आया कि, ब्रह्माजी का कहना सही था.ImageSource

भरतमुनि की इस नृत्यकला को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि, आप मेरे शिष्य तांडु से तांडव नृत्य की कला सीख लीजिये, उसके बाद आप संपूर्ण नृत्य कला में दक्ष हो जायेंगे. और भरत मुनि ने शिवजी की बात मानकर तांडव नृत्य की विधा भी सीख ली.
धीरे धीरे सनातन संस्कृति ने नृत्य की इस कला को अपना लिया, और ये हमारी परम्पराओं में इस तरह घुल गया कि, अब नृत्य और नाटक इंसान के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है.