सनातन भारतीय परंपराओं का सम्मान रामायण का हर पात्र सिखाता है। बड़े से बड़ा लोभ लालच भी संस्कारों से विचलित नहीं कर सकता यदि हम रामायण और रामायण के पात्रों के चरित्रों का अनुकरण करें तो।
एक चक्रवर्ती सम्राट होते हुए भी महाराज दशरथ का जनकपुरी के दूत के साथ किया गया विनम्र व्यवहार हम सब को अपने व्यवहार में लाना चाहिए। हम किसी भी पद पर हों परंतु हर इंसान को उचित सम्मान देना हम सब का कर्तव्य होना चाहिए।
जनकपुरी में महाराजा जनक और महाराजा दशरथ का वार्तालाप आज के लिए बहुत ही उपयोगी है। आज जहां वर पक्ष दहेज की मांग करता है और कन्या के पिता और कन्या पक्ष पर प्रभावी रहने का प्रयास करता है वहीं महाराजा दशरथ जनक जी से हाथ जोड़कर स्वयं को याचक मानते हुए उनकी बड़ाई कर रहे हैं।
रवीन्द्र रामायण में रवीन्द्र जैन जी ने लिखा है- एक भगवती के पिता, एक भगवत के तात। एकदूजे को कह बड़ा, फूले नहीं समात।।
जय श्रीराम 🙏
Gepostet von Arun Govil am Mittwoch, 6. Mai 2020
संस्कार और शिष्टाचार का सबसे बड़ा उदाहरण भगवान राम का चरित्र है। काफी समय बाद अपने पिता का जनकपुर में आना सुनकर भी बिना गुरु की आज्ञा लिए उनसे मिलने ना जाना उनके आदर्श शिष्टाचार का प्रमाण है।
साथ ही अयोध्या से बारात में आए हर व्यक्ति से रामजी का समान भाव से मिलना, सब को यथोचित सम्मान सत्कार देना और रात्रि में नियमित अपने पिताजी के चरण दबाना, ये वो संस्कार हैं जिनकी आवश्यकता मानव समाज को हमेशा होती है और दुर्भाग्य से आज यही संस्कार हमसे दूर हो रहे हैं। बड़े से बड़ा और कठिन से कठिन काम सहजता से कर देने के बाद भी किसी काम का श्रेय अपने आप पर न लेना, प्रशंसा सुनकर अभिमान न करना बल्कि उसे बड़ों का आशीर्वाद मानना यह राम की विनम्रता है।
जीवनसाथी के प्रति हमारे विचार, हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए और वैवाहिक संबंधों के लिए किस तरह की सोच होनी चाहिए इसको बहुत ही प्रभावी ढंग से समझाया है गुरुदेव वशिष्ठ ने।
हर मांगलिक कार्य में गोदान कराना हमारी परंपरा रही है और श्री सीताराम विवाह में भी गौ दान कराया गया। इससे सिद्ध होता है कि गौ माता पूरे संसार के लिए कितनी उपयोगी हैं और इसीलिए उनकी मान्यता युगों से चली आ रही है।