श्री मार्कण्डेय पुराण – तीन वेदों के तेज से प्रकट हुआ ॐ कार

मार्कण्डेय पुराण अट्ठारह पुराणों में सबसे प्राचीन में से एक है। यह पुराण मार्कण्डेय जी ने क्रष्टुकि ऋषि को सुनाया था इसलिए इस पुराण का नाम मार्कण्डेय पुराण पड़ा।

ImageSource

नवरात्रि में किया जाने वाला श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ इसी मार्कण्डेय पुराण से लिया गया है जिसमें आदिशक्ति जगत जननी भगवती दुर्गा की महिमा का विस्तृत वर्णन है। सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र की कथा, परम सती माता अनुसूया और अत्रि मुनि की कथा के साथ बहुत सारे पौराणिक चरित्रों का वर्णन इस पुराण में मिलता है। ऋग्वेद की ही भाँति इस पुराण में भी अग्नि, सूर्य, इंद्र आदि देवताओं का वर्णन है।
श्री मार्कण्डेय पुराण में एक सौ सैंतीस (137) अध्याय हैं और नौ हजार (9000) श्लोक हैं।

इस पुराण में पक्षियों को प्रवचन का अधिकारी बनाकर उनके मुख से धर्म का उपदेश कराया गया है जिससे हमारे प्राचीन जीवन में पशु पक्षी प्रेम तथा आत्मा की जागरूकता का परिचय मिलता है।

इस पुराण के प्रथम से 42 वें अध्याय तक की कथा महर्षि जैमिनि सुनाते हैं और उस समय कई जागृत आत्मा वाले पक्षी गण इस कथा को सुनते हैं।

43 वें से 90 वें अध्याय तक की कथा ऋषि मार्कण्डेय सुनाते हैं और क्रष्टुकि ऋषि सुनते हैं। इसके बाद 91 वें अध्याय से आगे का सारा वर्णन सुमेधा ऋषि द्वारा कहा गया है और इसके श्रोता हैं राजा सुरथ और समाधि वणिक। आकार प्रकार की दृष्टि से यह पुराण छोटा है परंतु महत्व की दृष्टि से बहुत बड़ा है।

मार्कण्डेय पुराण में मनुष्य का पशु पक्षियों सहित सृष्टि के सभी चर अचर जीवों से समान व्यवहार दिखाया गया है। एक ओर महान ज्ञाता ऋषि महर्षि प्रवचन कर रहे हैं तो दूसरी ओर अनेक प्रकार के शरीरों में स्थित पक्षी गण सुन भी रहे हैं और सुना भी रहे हैं। इसी क्रम में कुछ पक्षियों के पूर्व जन्म की कथा भी कही गई है जिससे आत्मा की अमरता और भक्ति भाव अथवा भगवत ज्ञान के अक्षय होने का प्रमाण भी मिलता है।

ImageSource

बलभद्र जी की तीर्थ यात्रा, द्रोपदी के पांच पुत्रों – प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक, श्रुतसेन की कथा, राजा हरिश्चंद्र के त्याग और सत्यव्रत की कथा, आडी और बक पक्षियों के युद्ध का वर्णन, दत्तात्रेय जी की कथा है, हैहय की कथा , 9 प्रकार की शक्तियों का वर्णन, कल्पान्त का वर्णन, यज्ञ, रुद्र आदि का वर्णन, अनेक मनुओं की कथाएं, मां दुर्गा के साकार होने की संपूर्ण कथा, तीन वेदों के तेज से प्रणव ‘ऊँ’ की उत्पत्ति, भगवान सूर्य देव के जन्म की कथा, वैवस्वत मनु के वंश का वर्णन, वत्सप्री का चरित्र, मदालसा का चरित्र, राजा अविक्षित का चरित्र, महाराजा इक्ष्वाकु और उनके वंश का वर्णन, नल, श्री राम, कृष्ण के वंश का वर्णन, सोमवंश, पुरुरवा की कथा, राजा नहुष, ययाति, यदुवंश की कथाएं, श्रीहरि विष्णु के विभिन्न अवतारों की कथाएं आदि इस पुराण में वर्णित हैं। उपसंहार में मार्कण्डेय जी का चरित्र और पुराणों के कहने सुनने या पठन-पाठन का फल बताया गया है।
ऊँ तत्सत